Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२] उत्तरपयहिउदीरणाए ठाणारणं सेसारिणयोगहारपरूवणा १६७ . ३६९. प्रादेसेण णेरड्य० भुज० जह० एयस०, उक्क० चनारि समया। अप्प० जहण्णुक० एयसमो, अथवा उक्क० चे समया । अबढि० जह० ए यस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि । एवं सत्तसु पुढवीसु | णरि सगद्विदी। तिरिक्खेसु भुज०अप्प. णारयमंगो । अवद्वि० जह० एयम०, उक्क. अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । एवं पंचिंदियतिरिक्खतिए । णवरि अबढि० जह. एयस०, उक० तिण्णि पलिदो० पुव्यकोडिपुषर्तममहियानि कततिला जीवहिप्रवत्त०
ओघं । पंचितिरिक्खअपज्ज०-मणु०पज्ज. अप्प० जहण्णुक० एयममओ। अवद्वि० जहरू एयस०, उक० अंतोमु० । देवाणं णारयभंगो । एवं भवणादि जाव गवगेवज्जा त्ति । णवरि सगढिदी । अणुहिसादि सव्वट्ठा ति भुज० जह० एयस०, उक० वे समया । अष्प० जहण्णुक एयस० ! अयहि जह० एगस०, उक्क० सगहिदी । एवं जाव० । प्रकृतियों का प्रवेशक होकर दूसरे समयमें अवस्थित पदका प्रवेशक होता है उसके अवस्थित पड़के प्रवेशकका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है और जो जीव अधपुद्गल परिवर्तनकालप्रथम समयमें उपशम सम्यक्त्वका उत्पन्न कर क्रमसे अतिशीघ्र मिथ्यात्वमें जाकर और अति स्वल्प उद्वेलनाकाल के द्वारा सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्त्रकी उद्वेलना कर २६ प्रकृतियोंका प्रवेशक को कुछ कम अधपुद्गल परिवर्तनकाल तक इसी पदका प्रवेशक बना रहता है । पुनः संसारमें रहने का अन्तमुहूत काल शेष रहने पर उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त कर जो इस पदका । विघटन करता है उसके अन्तर्मुहूर्त अधिक पल्पका असंख्यातवाँ भागप्रमाण काल कम उपाधं पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अवस्थित पदका उत्कृष्ट काल देखा जाता है।
३६६ श्रादेशसे नारकियोंमें भुजगारप्रवेशकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है। अल्पतरप्रवेशकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अथवा उत्कृष्ट काल दो समय है । अवस्थित प्रवेशकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेनीस सागर है । इसी प्रकार सातों पृथिविया में जानना चाहिए । किन्तु अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिए। तिर्योंमें भुजगार और अल्पतर प्रवेशकका भंग नारकियोंके समान है। अवस्थितप्रवेशकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो भसंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि अवस्थितप्रवेशकका जघन्य काल एफ समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्य है। इसी प्रकार मनुष्यों में जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें प्रवक्तव्यप्रवेशकका काल ओषके समान है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें 'अल्पतरप्रवेशकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितप्रवेशकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है । देवोंमें नारकियों के समान भंग है। इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर नौ मैवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि अवस्थितप्रवेशकका उत्कृष्ट काल कहते समय अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिए । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिदिमें भुलगारप्रवेशकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अल्पतरप्रवेशकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितप्रवेशकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है। इसी प्रकार अपहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।