Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
डाणं होण एगो भुजगारसमयो, तस्सेव विदियसमए पणुवीसपवेसङ्कालुष्पत्तीए विदियो भुजगारसमयो, से काले मिच्छत्तं पडिवगणस्स छब्बीसपवेसाणसंभवेण तदियो, पुणो तदणंतरसमए श्रद्धाबीसपवेसङ्काणपडिबद्धो चउत्यो समयो ति एवं भुजगारस्स चत्तारि समया भवति । अप० अवत्त० जहण्णुक० एस० । अथवा अप० उक० वे समया । तं कथं ? सम्मत्तमुम्बेल्लेमारयो वेदगपाओग्गकालं बोलाविय सम्मसाहिमुदो होदूरतरं करेमाणो अंतरदुचरिमफालीए सह सम्मत्तव्येल्लणाचरिभफालि शिवादिय से काले अंतरकरणं समातिय कमेण सम्मत्तममयूणावलियमेत्त हिदी श्रो गालिय एयसमयः पदरपवेसगो जादो, तम्मि समए सत्तावीसपवेसुलभादो । पुणो से काले सम्मामिच्छत पढमडिदिं णिल्लेविय वीसपवेसगो जादो। एसो विदियो अप्प - दरसमयो । एवं वे समया । व्यवडि० तिष्णि मंगा । तत्थ जो सो सादिश्रो सपज्जवसिदो तस्स जह० एयसमत्रो, उक्क० उबड्ढपोग्गलपरियहूं ।
समय में पच्चीस प्रकृतिक प्रवेशस्थानकी उत्पत्ति होनेसे दूसरा भुजगार समय हुआ । पुनः तदनन्तर समग्र में मिध्यात्वको प्राप्त हुआ उसके जा जि प्रवेशस्थान सम्भव होने से तीसरा भुजगाम । पुना तदनन्तरे समय में महाईस प्रकृतिक प्रवेशस्थान से सम्बन्ध रखनेवाला चौथा भुजगारसमय हुआ । इस प्रकार भुजगारके चार समय होते हैं ।
अल्पतर और अवक्तव्य प्रवेशकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अथवा अल्पतरप्रवेशकका उत्कृष्ट काल दो समय है ।
शंका- कैसे ?
समाधान – सम्यक्त्वकी उद्वेलना करनेवाला जीव वेदक प्रायोग्य कालको बिसाकर और सम्यक्त्व के अभिमुख होकर अन्तर करता हुआ अन्तरकी द्विचरम फालिके साथ सम्यवत्वकी उद्वेलना सम्बन्धी अन्तिम फालिका पातकर तथा तदनन्तर समय में अन्तरकरणको पूराकर क्रमले सम्यक्त्वकी एक समय कम आवलिप्रमाण स्थितियोंको गला + र एक समय तक अल्पतर प्रवेशक हुआ, क्योंकि उस समय सत्ताईस प्रकृतियोंका प्रवेश देखा जाता है । पुनः तदनन्तरं समय में सम्यग्मिथ्यात्व की प्रथम स्थितिका अभाव कर छब्बीस प्रकृतियों का प्रवेशक हो गया । यह दूसरा अल्पतर समय है । इसतरह अल्पतर प्रवेशक के दो समय प्राप्त हुए ।
अवस्थित प्रवेश के तीन भंग हैं। उनमें जो सादि- सान्त भंग है उसका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल उपार्थ पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है ।
विशेषार्थ - - यहां मोघसे भुजगार और अल्पतर प्रवेशकके उत्कृष्ट कालका निय erreira स्वयं किया है। इनके जघन्य कालका विचार सुगम है । उदाहरणार्थ १६ प्रकृतियोका प्रवेशक जो उपशमखिसे गिरनेवाला जीव जब स्त्रीवेदका अपकर्षण र २० प्रकृतियों का प्रवेशक होता है तक उसके भुजगार प्रवेशकका जघन्य काल एक समय देखा जाता है । तथा अठ्ठाईस प्रकृतियोंका प्रवेशक जो मिध्यादृष्टि जीव सम्यक्त्वकी उद्वेलना कर दूसरे समय सत्ताईस प्रकृतियोंका प्रवेशक होता है उसके अल्पतर प्रवेशकका जघन्य काल एक समय देखा जाता है। अवक्तव्यपद एक समय तक ही होता है, इसलिए इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है यह स्पष्ट ही है । तथा उपशम सम्यक्त्वके सन्मुख हो सम्यक्त्वको प्राप्त करने के दो समय पूर्व सम्यक्त्वकी उद्वेलना करके प्रथम समय में २८ से २७