Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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१६० जयधवलासहिदे कसायपाहुदे
[ वेदगो ७ * दोपहं पवेसगा संखेजगुणा ।
। ३५०. केण कारणेण ? पुरिसवेदोदपण खबगसेढिमारूढस्स अंतरकरणादो समयूणावलियाए गदाए तदो पहुडि जाव पुरिसवेदपढमट्टिदिचरिमममयो ति ताव पदम्मि कालविसेसे पुरसंचयाचलंबगावाटसाद त्रिी बामसेढीए चेव पयदसंचयो अवलंविञ्जदे तो चि पुचिल्लादो एदस्स संचयकालमाहप्पेण संखेजगुणत्तं ण विरुज्झदे ।
ॐ पकिस्से पवेसगा संखेजगुणा।।
३५१. कुदो ? पुविल्लादो एदस्म संचयकालमाहप्पदंसणादो। तं जहादोराहं पवेसगकालो णाम पुरिसवेदपढमट्टिदीए णसवेद-इस्थिवेद-अण्णोकसायक्खवणद्धामेत्तो । एकिस्से पवेसगकालो पुरण पुग्सिवेदयढमट्टिदीए गालिदाए तत्तो प्पहुडि अस्सकएणकरणकालो किट्टीकरणकालो कोधतिण्णिसंगहकिट्टिवेदगकालो माणवेदगकालो मायावेदगकालो लोभवेदकालो त्ति एदासि छएहमद्धाणं समुदायमेत्तो । एसो च पुब्बिल्लसंचयकालादो किंचूणदुगुणमेत्तो। तदो किंचूणदुगुणकालभंतरसंचिदत्तादो एसो रासी पुन्विलादो संखेनगुणो ति सिद्धं । इत्थिरणसयवेदाणमण्णदगेदएण खवगसेढिमारूढस्स सादिरेयतिगुणमेत्तो पथदसंचयकालो किष्णावलंविञ्जदे ? पुरिसवेदोदयं मोत्तरण सेसवेदोदएण चढमाण जीवाणं बहुत्तासंभवादो ।
*उनसे दो प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव संख्यातगुणे हैं ।
६३५० क्योंकि पुरुषवेदके उदयसे ज्ञपकवेरिण पर आरूद्ध हुए जीवके अन्तरकरणसे लेकर एक समय कम एक आवलिकाल जानेपर वहांसे लेकर पुरूपवेदकी प्रथम स्थितिके “न्तिम समक्के प्राप्त होने तक इस काल के भीतर हुए प्रकृत सञ्चयका अक्लम्बन लिया गया है। यद्यपि उपशमणिका अपेक्षा है। प्रकृत सम्चयका अवलम्बन लिया जा सकता है तो भी पूर्वसे यह सञ्चयकाल बड़ा है, इसलिए इसमें संख्यातगुणी जीवराशिके प्राप्त हाने में कोई विरोध नहीं पाता।
* उनसे एक प्रकृति के प्रवेशक जीव संख्यातगुणे हैं।
३५१. कमों क पूर्वके सब्चयकालसे यह सञ्चयकाल बड़ा देख जाना है। यथादो प्रकृतियों का प्रवेशकाल पुरुपवेदकी प्रथम स्थिनिके रहते हुए नपुसकवेद, स्त्रीवेर और छह मोकषायोंका क्षपणाकालमात्र है। परन्तु एक प्रकृतिका प्रवेशकाल पुरुषवेदकी प्रथम स्थितिके गल जानेपर वहांसे लेकर श्रश्वकर्माकरणकाल, कृष्टिकरणकाल, क्रोधकी तीन संग्रहकृष्टिवेदककाल, मानघरककाल, मायावेदफकाल, और लोभवेदक काल इसप्रकार इन छह कालाके ममुदायप्रमाण है। और यह पहलेके सञ्चयकालसे कुछ कम दूना है, इसलिए कुछ कम दूने कालके भीतर सहिचत होनेके कारण यह राशि पूर्वकी राशिसे संख्यातगुणी है यह सिद्ध हुप्रा।
शंका-स्त्रीवेद और नपुसकवेदमेंसे किसी एक वेदके उदयसे ज्ञपकश्रेणी पर चढ़े हुपकी अपेका साधिक निगुरो प्रकृत सञ्चयकालका अवलम्बन क्यों नहीं लिया जाता ?
ममाधान-~-नहीं, क्योंकि पुरुषवेदको छोड़कर शेष वेदोंके उदयसे चढ़े हुए जीवोंका बहुत होना असम्भव है।