Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२ ]
जहणकालो वत्तच्यो ।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज उत्तरपयखिदीरणाए ठाणा एयजीवेण कालो
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* उक्करसेण तेत्तीसं सागरांवमाथि सादिराणि ।
२९९. तं जहा - एको देवो खेरइओ वा चउवीससंतकम्मिश्र पुनकोडाउपसु मणुस्सेसु उवष्णो । गम्भादिअद्भुवस्सामंतोमुत्तम्भहियाणमुवरि दंसणमोहणीयं खविय एकवीसपवेसगो होरा पुब्वकोडिं जीविय कालं कारण तेत्तीससागरीवमिसु देवेववज्जिय तत्तो चुदो पुञ्जकोडा उश्रमण से सुववज्जिय तोमुहूत सेसे संसारे खरगसेढिमारूदो अकसाए खविय तेरसहं पवेसगो जादो । एवमंतोमुहुत्तभविस्सेहिं परिही दोपुन्नकोडीहिं सादिरेयाणि तेत्तीस सागरोवमाणि एकवीसपवेसगस्स उस्सकालो होइ ।
* बावीसाए पणुवीसाए पयडीणं पवेसगो केवचिरं कालादो होदि ? ३००. सुगमं ।
ॐ जहणणे एयसमश्र ।
९३०१. बावीस पवेसगस्स तात्र उच्चदे | अणताणुबंधि० त्रिसंजोएदूसरा दि उवसमसम्माइट्ठी इगिवीपवेसगी सासयसम्मत्तं मिच्छत्तं सम्मामिच्छतं वेदगसम्मत्ताणि वा पडिवण्णो, पदमसमए वासपवेसगो होदृरण पुणो विदियसमए जहाकर्म पणुचीसाए अट्टारीसाए चदुवीमाए पवेसगो जादो, लद्धो बावीस पवेसगस्स हो वा प्रकृतियोंका प्रवेशक हो गया उसके यह जघन्य काल कहना चाहिए। * उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर हैं ।
* बाईस और पच्चीस प्रकृतियोंके प्रवेशकका कितना काल है ?
६३००. यह सूत्र सुगम है।
* जघन्य काल एक समय है ।
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२६. यथा- एक देव या नारकी चौबीस प्रकृतियों की सत्तावाला पूर्वकादिकी श्रायुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। वह गर्भसे लेकर आठ वर्ष और अन्तर्मुहूर्त के बाद दर्शनमोहनीय का क्षय कर इक्कीस प्रकृतियोंका प्रवेशक हो तथा पूर्वकोटि काल तक जीवित रहकर मरा और तीस सागरकी युवाले देवोंमें उत्पन्न हो पुनः वहाँसे च्युत हो तथा पूर्वकोटिकी श्रायुवाले मनुष्यों में उत्पन्न हो संसार में रहनेका अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहनेपर क्षपकश्रेणि पर चढ़कर तथा आठ कषायों का क्षय कर तेरह प्रकृतियोंका प्रवेशक हो गया। इस प्रकार सान्तर्मुहूर्त आठ वर्ष कम दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागर प्रमाण इक्कीस प्रकृतियोंके प्रवेशकका उत्कृष्ट काल होता है ।
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२०१. सर्वप्रथम बाईस प्रकृतियोंके प्रवेशकका कहते हैं— अनन्तानुबन्धचतुष्ककी त्रिसंयोजना कर इक्कीस प्रकृतियोंका प्रवेशक हो स्थित हुआ उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सासादन सम्यक्त्व, मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व या वेवकसम्यक्त्वको प्राप्त करके प्रथम समय में बाईस प्रकृतियों का प्रवेशक हो फिर दूसरे समय में कमसे पक्चीस, अट्ठाईस और चौबीस प्रकृतियोंका प्रवेशक हो गया । इस प्रकार बाईस प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य काल एक समय प्राप्त हुआ ।