Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[वेदगो सवणेरड्य०-सव्वपंचिदियतिरिक्ख-मणुसअपज्ज०-देवा भवणादि जान गवगेवज्जा त्ति । तिरिक्वेसु मव्यपदाणमोघं | मणुसेसु २८ २७ २६ केसि० ? असंखेज्जा ।
सेसपदा संखेज्जा । मणुसयज्ज०-मणुसिणी-सहदेवेसु सबपदा संखेज्जा । अणुदिवसादियानाडा सुविधासमारी शहात्ति ? असंखेज्जा । २२ पवे० के० ? संखेज्जा । एवं जार० ।
३३२. खेत्ताणु० दुविहो णि०--ओघेण आदेसेण य । ओघेण छब्बीसयवे० केवडि खेत्ते ? सबलोगे । सेसपदाणि लोग० असंखे भागे । एवं तिरिक्खा०। सेसदीसु सव्यपदा लोग० असंखे०भागे । एवं जाव० |
३३३. पोसणाणु० दुविहो णि-अोघेण आदेसेण य । ओघेल छब्बीसपदे० सबलोगो। २८ २७ लोग० असंखे भागो अट्ठचोदस० देखणा सबलोगो वा । २५ पवे लोग. असंखे० भागो अह-बारहचोदस० । २४ २२ २१ लोग० नारकियोंमें सब पदोंके प्रवेशक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसीप्रकार सब नारकी, सब पञ्चन्द्रिय तिर्यन, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर नौ अवेयक तकके देवों में जानना चाहिए। तियनोंमें सन्य पदों के प्रवेशक जीवोंका परिमाण अोधके समान है। मनुष्योंमें २८,२७ और २६ प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव कितने हैं ? असंख्यात है। शेष पबोके प्रवेशक जीव संख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवाम सब पदोंके प्रवेशक जीव संख्यात हैं। अनुदिशसे लेकर अपराजित तकके देवा में २८, २४ और २१ प्रकृतियों के प्रवेशक जीव कितने हैं । असंख्यात हैं । २२ प्रकृतियों के प्रवेशक जीव कितने हैं ? संख्यात है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
३३२. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है. घोष और आदेश । श्रीघ छब्बीस प्रकृतियोंके प्रवेशक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सर्व लोक क्षेत्र है। शेष पोंके प्रवेशक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवं भागप्रमाण है। इसीप्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए । शेष गतियोंमें सब पदोंके प्रवेशक जीगेका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ- यद्यपि २६ प्रकृतिक प्रवेशस्थान सम्यग्दशनके होनेपर भी होता है, परन्तु सम्यग्दर्शन होनेके पूर्व सब जीव छत्रीस प्रकृतियोंके प्रवेशक ही होते हैं और वे अनन्त है, इसलिए उनका क्षेत्र सर्व लोक कहा है। किन्तु शेष स्थानों के प्रवेशक जीव सम्यग्दर्शन होनेके बाद यथा योग्य गुणस्थानके प्राप्त होनेपर ही होते हैं, अनः उनका सर्व लोक क्षेत्र नहीं बन स ता, इसलिए उनका लोकका असंख्यातवां भागप्रमाण क्षेत्र कहा है। अपने सम्भव पदांकी अपेक्षा यह क्षेत्र सामान्य तिर्यश्चोंमें बन जाता है, इसलिए उनकी प्ररूपणा ओषक समान जाननेकी सूचना की है। तथा गतिमार्गणाके शेष भेदोंका क्षेत्र ही लोकके असंख्यात्त भागप्रमाण है, इसलिए उनमें सम्भव सय पदोंके प्रवेशकोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है।
३३३, स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है -ओघ और आदेश । श्रोषसे छब्बीस प्रकृतियों के प्रवेशकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । २८ और २७ प्रकृतियोंके प्रवेशकोंने लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम पाठ भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । २५ प्रकृतियोंके प्रवेशकोंने लोकके असंख्यातवें भाग