Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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] उत्तरपयडिउदोरणाए अणियोगद्दारपवणा मा सारयभंगो । एवं सोहम्मादि जाव गवगेवजा ति । भवण-वाण-जोदिसि० विषपुढधिभंगो । अणुद्दिसादि सबट्ठा त्ति रणव० अ० सत्त० छ• पिय० अस्थि । जाव० ।
पीक एक्युप्राताभित्रमुचायासारूविदाणं भागाभाग-परिमाण-कोसपाणमुञ्चारणावलेन परूवणं कस्मामो । तं जहा–भागाभागाणु० दुविहो
-ओघे० प्रादेसे० । अोघेण अट्ठण्हमुदीर० सव्यजीवाणं केवडि• ? संखेजा भागा। दस० णव० उदो० संखे भागो। ७, ६, ५, ४, २, १ उदीर० सव्वजी०
र ? अणंतिमभागो। ... १३७. आदे० णेरइय, अट्ठ. संखेजा भागा | दम० णव० संखे भागो ।
समसंखे भागो । एवं सव्वणेर० पंचिंतिरिक निय० देवा भवणादि जाप सहस्सार ।सि। तिरिक्वेसु दस० णव० अढ० सन० छ० पंत्र. ओंघं । पंचिंतिरि०अपज मणुसअपल० दस० पत्र. अट्ट० ओषं । मणुसेसु दस० एन० संखे भागो । अनु० सखेडा भागा। सेसमसंखे भागो। एवं मयुमपञ्जा-मणुसिणीसु । णत्ररि संखेज हायच्वं । आगदादि णवगेवजा त्ति दग० गाव. अ. ल. संखे भागो । सत्त ० ११६ हैं। देवोंमें गारकियों के समान भंग है। इसी प्रकार सौर्म कापस लेकर नौ मेवेयक कके विमि जानना चाहिए। सवनवाली, व्यन्तर और यांनिपी देवों में दूसरी पृथिवीके समान भंग
न। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें नौ, आठ, सान और छह प्रकृतियों के प्रवेशक 1. श्रीध नियमसे हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गमा तक जानना चाक्षिण।
६१३६. यहाँ पर सुगम होनेसे चूर्णिसूत्रकारके द्वारा नहीं कहे गये भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र और स्पर्शनका उच्चारणाके बलसे कथन करते हैं। यथा-भागाभागानुगमकी अपेक्षा । निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश । ओघसे पाठ प्रकृतियोंके उदीरक जीव सम जीवोंके
कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यात बहुभागप्रमागा है। दस और नौ प्रकृतियोंके उदीरक जीव । संख्यात भागप्रमाण है। सात, छह, पाँच, चार, दो और एक प्रकृतिके उदीरक जीव सब जीयोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्त भागप्रमाण हैं।
६१३७. आदेशसे नारकियोंमें आठ प्रकृनियोंके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इस और नौ प्रकृतियों के उदीरक जीत्र संख्यात भागामारण है। शेष प्रकृतियोंके उदीरक जीव " असंख्याता भागप्रमाण है। इसी प्रकार सब नारकी, पन्नेन्द्रिय निर्यचत्रिक, देव और भवन
वासियोंसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें जानना चाहिए। तिर्यञ्चोंमें दस, नी, पाठ, सात, अह और पाँच प्रकृत्तियोंके उदीरकोंका भंग श्रोघके समान है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें दस, नौ और आठ प्रकृतियोंके उदीरकों का भंग ओघके समान है। मनुष्योंमें दस और नौ प्रकृतियोंके उदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। आठ प्रकृतियों के अदीरक जीप संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। शेष प्रकृतियों के उदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है, कि असंख्यातके स्थानमें संख्यात करना चाहिए । अानत कल्पसे लेकर नौ अवेयक तकके देषोंमें दस, नी, पाठ और छह प्रकृतियोंके उदीरक जीत्र संख्यातवे भागप्रमाण हैं। सात