Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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उत्तरपयडिपरणार ठाणसमुत्तिरा पयडिपिसी च
पड़ाव क्रमाह
गा० ६२ ]
संपहि तदुभयपरूवणमुदरिमसुणावसरो कीरदे—
एथ पुवं गमणिजा ठाणसमुक्किन्तथा पय डिपिसो च । २४६. एत्थ एदम्मि पथ डिडाणपवेसे पुण्वं पढममेव गमणि श्रणुमग्गियन्ब्बा ठाणसमुत्ति पडिणिसो च । तत्थ द्वाणसमुक्किसणा गाम अवीसाए पर्याडिद्वाणमादि काढूण श्रधादेसेहिं एसियाणि पयडिद्वाणाणि उदयावलियं पविसमाणारिण अस्थि त्ति परूवणा । पथडिणिसो गाम एदाओ पयडीओ घेतखेदं पवेसाणमुत्पज्जर तिरुवणा । एदेसिं च दोएहमेयपघट्टएण परूवणं कस्सामो चि जाणावमुत्तरं
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* ताषि एकदो भणिस्संति ।
$ २४७. सुगमं ।
* अट्ठावीसं पयडीओ उद्यावलियं पविसंति ।
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२४८ अट्ठावीस पायप्पयमेचंय पचितिहास जिस माणमस्थि ति समुक्रित्तिदं होड़ । एत्थ पडिणिसो जर वि मुत्तकंठं प परुविदो तो वि तणिसो को चेवेति दङ्कव्योः अट्ठावीस संखाणिदेसेणेव मोहपयडीणं सामणिसस्स जाणाविदत्तादो ।
* सत्तावीसं पयड़ोओ उदयावलियं पविसंति सम्भन्ते उव्वेल्लिदे । २४९. श्राससंतकम्मियमिच्छाइद्विणा पुव्युत्त द्वारा दो सम्मत्ते उम्बेल्लिदे अब इन दोनोंका कथन करनेके लिए आगे के सूत्रद्वारा अवसर करते हैं---
* यहाँ पर सर्व प्रथम स्थानसमुत्कीर्तना और प्रकृतिनिर्देश ज्ञातव्य है ।
६ २४६, यहां पर अर्थात् इस प्रकृतिस्थानप्रवेश अनुयोगद्वार में 'पु' अर्थात् प्रथम ही स्थानसमुत्कीर्तना और प्रकृतिनिर्देश 'गमणिज्जा' अर्थात् अनुमार्गण करने योग्य हैं। उनमें से मासप्रकृतिक स्थान से लेकर घोघ और आदेश से इतने प्रकृतिस्थान उदद्यावलिमें प्रविशमान हैं ऐसी प्ररूपणा करना स्थानसमुत्कीर्तना है। तथा इन प्रकृतियोंको ग्रहण कर यह प्रवेशस्थान उत्पन्न होता है ऐसी प्ररूपणा करना प्रकृतिनिर्देश है। इन दोनोंका एक प्रबन्धके द्वारा कथन करेंगे ऐसा ज्ञान कराने के लिए आगेका प्रतिज्ञानाक्य करते हैं
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* उन दोनोंको एक साथ कहेंगे ।
$ २४७. यह सूत्र सुगम है ।
* अट्ठाईस प्रकृतियाँ उदयावलिमें प्रवेश करती हैं ।
$ २४८ अट्ठाईस प्रकृतिसमुदायका एक प्रकृतिस्थान उदयावलि में प्रविशमान है यह इस सूत्र द्वारा कहा गया है। इस सूत्रमें यद्यपि मुक्तकण्ठ होकर प्रकृतियोंका निर्देश नहीं किया गया है तो भी उनका निर्देश किया ही है ऐसा जानना चाहिए, क्योंकि बट्टाईस संख्याका निर्देश करनेसे ही मोहनी की प्रकृतियों का नामनिर्देश जता दिया है।
* सम्यक्त्रकी उद्वेलना करने पर सत्ताईस प्रकृतियाँ उदयावलिमें प्रवेश करती हैं। $ २४६. अट्ठाईस सत्कर्मिक मिध्यादृष्टिके द्वारा पूर्वोक्त स्थानमेंसे सम्यक्त्वकी उद्वेलना १५