Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
View full book text
________________
११२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो मणुसिभी० । रणवरि संखेजगुणं कायव्वं । एवं जाव० ।
एवं चड्ढी समत्ता । एवं पयडिहाणउदीरणा समत्ता | तदो 'कदि वलियं पवेसेदि' त्ति पदं समत्तं ।
एवं पयडिउदीरणा समत्ता । १ कपि च पविसंति कस्स आयलियं ति । मार्गदर्श४४. अहिवारसभालणसुसमदनी रहती उपरि 'कदि च पविसंति कस्स श्रावलियमिदि बिदियो गाहासुत्तावयत्रो विहासियव्यो ति पयवृत्तादो । गवरि एदम्मि सुत्तावयचे पयडिपवेसो पडिबद्धो; उदयाणुदयसरूवेणुदयावलियमंतरं पविसमाणपयडिमेत्तेणेत्याहियारादो । सो वुण पयडिपवेसो दुविहो-मूलपयडिपवेसो उत्तरपडिपवेसो चेदि । उत्तरपडियवेसो च दुत्रिहो-एगेगुत्तरपयडिपवेसो पयडिहाणपवेसो चेदि । तत्थ मूलपयडिपवेसो एगेगुत्तरपयडिपवेसो च सुगमो ति ह सुत्ते विहासिदो । तदो पादेकं चउवी समणियोगदारेहिं तेसिमेत्थ विहासा जाणिय कायब्धा । तदो पयडिट्ठाणपवेसे पयदं । तत्व इमाणि सत्तारस अणियोगदाराणि-समुकित्तणा सादि० अणादि० जाव अप्पाचहए ति भुज० पदणि० वढीओ च ।
* २४५. तस्थ समुक्त्तिणा दुविहा–ठाणसमुक्त्तिणा पयडिसमुकित्तणा चेदि । असंख्यातगुणेके स्थानमें सख्यातगुरमे करने चाहिए। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
इसप्रकार वृद्धि समाप्त हुई।
इसप्रकार प्रकृतिस्थान उदीरणा समाप्त हुई। इसलिए 'कदि श्रावलियं पवेसेदि' इस पदका व्याख्यान समाप्त हुआ।
इसप्रकार प्रकृतिउदीरणा समाप्त हुई। * किस जीवके कितनी प्रकृतियाँ उदयावलिमें प्रवेश करती हैं।
६२४४. अधिकारकी सम्हाल करनेवाला यह सूत्र है। अब पूर्वोक्त कथनके आगे गाथा सत्रका कदि च पविसंति कस्स श्रावलिय' यह दूसरा पद प्रकृतमें प्रवृच होनेसे व्याख्यान करने योग्य है । इतनी विशेषता है कि इस सूत्रपदमें प्रकृतिप्रवेश अनुयोगद्वार प्रतिबद्ध है, क्योंकि उदय
और अनुदयरूपसे उदयावलिमें प्रवेश करनेवाली प्रकृतिमात्रका यहाँ अधिकार है। वह प्रकृतिप्रवेश दो प्रकारका है मूलप्रकृतिप्रवेश और उत्तर प्रकृतिप्रवेश । उत्तर प्रकृतिप्रवेश दो प्रकारका है-एकैक उत्तरप्रकृतिप्रवेश और प्रकृतिस्थानप्रवेश । उनमें मूलप्रकृतिप्रवेश और एकैक उत्तरप्रकृतिप्रवेश सुगम हैं, इसलिए इस सूत्रमें उनका व्याख्यान नहीं किया। इसलिए अलग अलग चौबीस अनुयोगद्वारोंका श्राश्रय लेकर यहां पर उनका व्याख्यान जानकर कर लेना चाहिए। अतएव प्रकृतिस्थानप्रवेश प्रकृत है। उसमें समुत्कीर्तना, सादि, और अनादिसे लेकर अल्पत्रहत्य तक ये सत्रह अनुयोगद्वार तथा भुजगार, पदनिक्षेप और वृद्धि ये सीन अनुयोगद्वार हैं।
२१५. उनमें समुत्कीतना दो प्रकारको है-स्थानसमुत्कीर्तना और प्रकृतिसमुत्कीर्तना ।