Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
View full book text
________________
गा० ६२] उत्तरपयडिउदीरणाए ठाणसमुचित्त रणा पयडिणि सो च १२१
२६६. गर्बुसयाद ओकष्टुिंदे तकाले चेवांतरविणासो होइ । तदणंतरसमए णQसयवेदेण सह एकवीस पयडीओ उद्यावलियं पविसंति त्ति भणिदं होइ ।
9 एत्तो पाए जइ स्वीसणमोहलोपोगरवायोसएककोसंहायवडीयो पविसति जाव अक्ग्वचग-अणुवसामगो ताव ।।
२६७. एत्थ जई खीणदंस गमोहणीयो ति वयणमक्खीणदंसणमोहणीयम्मि विणटुंतरम्मि अंतोमुहुत्तादो उपरि पयारंतरसंभवपदप्पायणहूँ । अक्खवगाणुवसामगविसेसणं खगोवसामगपजाएण परिणदम्मि तम्मि पुणो वि अंतरकरणादिवसेण इगियीसपोसट्ठाणविणासो होइ ति जाणायणटुं । तदो उवसामणादो परिवदिदो खझ्यसम्माइट्ठी हेटा णिपदिय पमत्तापमत्तसंजद-संजदासजद-असंजदसम्माइद्विगुणहारणेसु जेत्तियं कालमच्छइ तेतियं कालमिगिवीसपवेसट्ठाणमविणई होदण पुणो खवगोवसमसेढिमारोहणे विणस्सदि ति एसो एदस्स भावत्थो । संपहि उवसंतदसणमोहणीयमस्सिऊण एत्तो हेटा अण्णाणि वि पवेसट्ठाणाणि समुप्पजंति ति जाणावेदुमुत्तरसुत्तपबंधमाह
ॐ एक्स्स चेव कसायोवसामणादो परिवदमाणयस्स ।
२६८. एदस्स चेव कसायोवसामणादो परिवदमाण यस्स उवसंतदंसणमोहणीयस्स किं चि णाणत्तमस्थि तमिदाणि वृत्तहस्सामो ति एवं पदसंबंधो कायन्त्रो । जह
२६६. नपुंसकवेदका अपकर्षण होने पर उसी समय अन्तरका विनाश होता है। पुनः तदनन्तर समयमें नपुंसकवेदके साथ इक्रीस प्रकृतियाँ उदयावलिमें प्रवेश करती हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* इसके आगे यदि वह क्षीणदर्शनमोहनीय है तो ये इक्कीस प्रकृतियाँ तब तक प्रवेश करती हैं जब तक वह अक्षपक और अनुपशामक रहता है।
६२६७. यहाँ पर बनीणदर्शनमोइनीयके अन्तरका नाश होने पर अन्तर्मुहूर्तके याद प्रकारान्तर सम्भव है इस बातका कथन करने के लिए 'यदि क्षीणदर्शनमोहनीय है। यह वचन दिया है। क्षपक और उपशामक पर्यायसे परिणत जस जीवके फिर भी अन्तरकरण आदिके शसे इकोस प्रकृत्तियोंका प्रवेशस्थान नष्ट होता है इस बातका शान करानेके लिए 'अक्षपक अनुपशामक' विशेषण दिया है। इसलिए उपशामनासे गिरा हुआ क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव नीचे गिर कर प्रमत्तसंयत्त, अप्रमत्तसंयत, संयतासंयत और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में जितने काल रहता है उतने कालतक इक्कीस प्रकृतियोंका प्रवेशस्थान नष्ट न होकर पुनः क्षपक
श्रेणि और उपशमणि पर. श्रारोहण करने पर नष्ट होता है यह इस सूत्रका भावार्थ है। । अब उपशान्तदर्शनमोहनीय जीवका आश्रय कर इससे नीचे अन्य भी प्रवेशस्थान उत्पन्न होते हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिए भागेके सूत्रप्रबन्धको कहने हैं
* कषायोंकी उपशामनासे गिरनेवाले इसी जीवके ।
$ २६८. जिसने दर्शनमोहनीयका उपशामना की है ऐसे कषायोंकी उपशामनासे गिरमेवाले इसी जीवके कुछ विभिन्नता है उसे इस समय बतलावेंगे इसप्रकार इस विधिसे पदसम्बन्ध
...
.
.....
........
..
..
....
.....
.
.....
१६