Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२ ]
उत्तरपयविउदीरणाए ठारणसमुक्ति पय डिपियो श्री सुविधिसागर जी महाराज
_१२३
* से काले चडवीसं पयडीओ पविसंति ।
२७१. सुगमं । जइ वि पुव्यमसंजदपाओग्गद्वाणपरूवणाए इगिवीस-बावीसचउदीसपवेसडाणाणं समुचिणा कया तेरा उवसामगपडिवादसंबंधेण पुणो वि पयारंतरेणदेसिवण्णासो कति स पुरुरादोसो ।
* जइ सो फसायउवसामणादो परिवदिदो दंस मोहोय उवसंत डाए अचरिमेसु समएस आसाणं गच्छ तदो आसाएगमपादो से काले पशुवीसं पडीओ पविसंति ।
१२७२. एस्स स्सत्थो तुच्च दे - कलायोवसामणादो परिवदिदस्स दसरामोहणीयञ्चसंता तोमुहुत्ती सेसा अस्थि तिस्से बावलियावसेसाए प्पहूडि जाव तदद्धाचरिमसमयोचिताव सासरणगुणेण परिणामेतुं संभवो । तत्थ चरिमसमए सासणभावं परिणममाणस्स अण्णा परूवणा भविस्सदित्ति तं मोत्तूण दृचरिमादिहेड्डिमसमएस हेट्ठिमभावं पडिवमाणस्स ताव पवेसडाणगवे सखमेदेण सुरेख कीरदे | तं जहा -- कमायो सामणादो परिवदिदो उवसंतदंसणमोहणीयो दंसणमोइउत्रसंतद्धाए दुरिमा दिहे कि मममएस जड़ श्रसारणं गच्छछ तदो तस्स सासणभावं पडवण्णस्स पढमसमए प्रावीण मरणद्रस्स पत्रेसेण बावीसपवेसङ्कारणं होई । कुदो तत्थारणं
* तदनन्तर समय में चौबीस प्रकृतियाँ प्रवेश करती हैं
१२७१. यह सूत्र सुगम है । यद्यपि पहले असंयत जीवोंके योग्य स्थानोंकी प्ररूपणा करते समय इक्कीस बाईस और चौबीस प्रकृतिक प्रवेशस्थानोंकी समुत्कीर्तना कर आये हैं तो भी उपशामक जीवके प्रतिपातके सम्बन्धसे फिर प्रकारान्तरसे इनका उपन्यास किया है, इसलिए पुनरुक्त दोष नहीं है ।
* यदि वह कपायोंकी उपशामना से गिरता हुआ दर्शन मोहनीय के उपशामनाकालके अचरम ( चरम समय से पूर्व ) समय में सासादन गुणस्थानको प्राप्त होता है तो उसके सासादन गुणस्थान में जानेके एक समय बाद पच्चीस प्रकृतियां प्रवेश करती हैं ।
$ २७२. इस सूत्रका अर्थ कहते हैं - कपायोपशामनासे गिरे हुए जीवके दर्शन मोहनीयके उपशमनाका काल अन्तमुहूर्त शेष बचता है । उसमेंसे जब छह आवलि काल शेष रहे वहाँसे लेकर उपशामना कालके अन्तिम समय तक सासादन गुणरूप से परिणामन करना सम्भव है । उसमें से अन्तिम समय में सासादनभावको प्राप्त होनेवाले जीवकी अन्य प्ररूपणा होगी, इसलिए उसे छोड़कर द्विवरम आदि श्रवस्तन समयोंमें अस्तन भावको प्राप्त होनेवाले जीवके सर्व प्रथम प्रवेशस्थानकी गवेषण। इस सूत्र द्वारा करते हैं । यया--कपायोपशामनासे गिरता हुआ उपशान्त दर्शनमोहनीय जीव दर्शनमोहके उपशमना के कालके अन्तर्गत द्विवरम आदि अवस्तन समयों में यदि सासादनगुणस्थानको प्राप्त होता है तो सासादनभावको प्राप्त होनेवाले उसके प्रथम समयमें अनन्तानुबन्धियों में से किसी एक प्रकृतिका प्रवेश होनेसे बाईस प्रकृतियोंका प्रवेशस्थान होता है।