Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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१२८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
। येहगो पढमहिदी चिट्ठदि, सेसाणमेकारसपयडीणमुदयावलियम्भंतरे समयूणावलियमेनागोयुच्छा सेसा । पुणो तेसु अहिदीए गिरवसेसं गालिदसु ताधे दो चेच पयडीओ उदयावलियं पविसंति, पुरिसवेद-कोहसंजलणे मोक्षणण्णेसिं पढमद्विदीए असंभवादो ।
पुरिसघेदे खविदे एका पयडी पविसदि। 5 २८२. तेणेच दोण्हं पवेसगेण खवगेण जहाकम णबुस-इथिवेदे खविय तत्तो 4 अंतोमुह गंतूण पुरिसवेदपढमद्विदिचरिमसमए छण्णोकसाएहिं सह पुरिसवेदचिराणसंतकम्मे खविदे तदो पहुडि एका चेव पयडी पक्सिदि, तत्थ कोहसंजलणं मोत्तण अण्णेसिं पढमहिदीए अणुचलंभादो। णरि पढमे द्विदीए सह पुरिसवेदचिराणसंतकम्मे खविदे पुरिसवेदो खरिदो चेवे त्ति सुने विवक्खियं; बिदियविदिसमबढिदणवकबंधस्स पहाणत्ताभावादो। एसो अत्यो उरिमसुत्तेसु वि वक्ताणेयन्चो ।
* कोधे खविदे माणो पविसदि।
माणे खरिदे माया पविसदि। मायाए स्वविवाए लोभो पषिसदि ।
लोभे स्वपिदे अपवेसगो। ६२८३. पदाणि सुत्ताणि सुगमाणिं । णवरि कोहपढमहिदीए प्रावलियमेत~~~... मादिर्शक आचार्यश्री तुविधिसागर जी हाससमाप्त करता है तब पुरुषवेद और क्रोधसंज्वलनको अन्तर्मुहर्त मात्र प्रथम स्थिति स्थित रहती है, शेप ग्यारह प्रकृतियोंकी एक समय कम भावलि भात्र गोपुरला शेष रहती है। पुनः अधःस्थितिके द्वारा उनको पूरी तरहसे गला देनेपर तब दो प्रकृतियाँ ही उदयालिमें प्रवेश करती हैं, क्योंकि पुरुषवेद और क्रोधसंज्वलनको छोड़कर अन्य प्रकृतियोंकी प्रथम स्थिति वहाँ सम्भव नहीं है।
* पुरुपवेदका क्षय होनेपर एक प्रकृति प्रवेश करती है ।
२८२. दो प्रकृतियोंके प्रवेशक उसी चपक जीवके द्वारा क्रमसे नपुसकवेद और स्त्रीवेदका क्षय करके उसके बाद अन्तर्मुहूत जाकर पुरुषवेदकी प्रथम स्थिति के अन्तिम समयमें छह नोकषायोंके साथ पुरुषवेदके प्राचीन सत्कर्मका क्षय कर देने पर उनके भागे एक प्रकृति ही प्रवेश करती है, क्योंकि वहाँ पर क्रोधसंज्जलनको छोड़कर अन्य प्रकृतियों की प्रथन स्थिति नहीं पाई जाती। किन्तु इतनी विशेषता है कि प्रथम स्थितिके साथ पुरुषवेदके प्राचीन सत्कर्मका तय होनेपर पुरुषवेदका क्षय कर ही दिया यह सूत्र में विवक्षित है, क्योंकि द्वितीय स्थिति में अवस्थित नश्कबन्धकी प्रधानता नहीं है यह अर्थ प्रागेके सूत्रोंमें भी कहना चाहिए ।
* क्रोधका क्षय करने पर मान प्रवेश करता है। * मानका क्षय करने पर माया प्रवेश करती है । * मायाका क्षय करने पर लोभ प्रवेश करता है। * लोभका क्षय करने पर अप्रवेशक होता है। F२८३. ये सूत्र सुगम हैं। किन्तु इसनी विशेषता है कि क्रोधसंचलनको प्रथम स्थिति