Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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उत्तरपयविषदीरणा वढि परूपणा
$ २४२. भावागमेण सव्वत्थ ओद भावो ।
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९ २४३. अप्पात्रहुआ० दुविहो णि० - ओघे० आदेसे ० । श्रघेण सव्वत्थोवा भवत्त० उदीर० | संखे० गुणहाणिउदीर० संखे० गुणा । संखे० गुणवडिउदी० असंखे०गुणा । संखे० भागवडिउदीर अपंतगुणा । संखे ० भागहारिणउदीर० विसेसाहिया | अ० उदी० [सं० गुणा । आदेसेण खेरइय० सव्वत्थोवा संखे० भागवडिउदीर० । संखे० भागहा० उदीर० विसेसा० | अवडि० उदीर० श्रसंखे० गुणा । एवं सव्वरइय ०. सय्यदेव त्ति | वरि सव्वट्टे संजगुणं कायव्यं । तिरिक्खेसु सव्वत्थोवा संखे० गुणबडिउदीर ० | संखे ० भार्गवादी० श्रार्तगुरु जिविसेसहाचाप्रवह्निः असंखे गुणा । एवं पंचिं ० ति रिक्खतिए । णवरि जम्मि अांतगुरया तम्मि श्रसंखे० ० गुणा । पंचि ० तिरि०प०- मरणुस प० सव्वत्थोत्रा संखे ० भागवडि० हाणि० दो वि सरिसा 1 श्रवट्टि ० उदीर असंखे० गुणा | मरणुसेसु सच्चस्थोचा प्रवत्त ०उदी० | संखे ० गुणहाणि - उदीर० संखे० गुणा संखेअगुणवडिउदी० संखे० गुणा । संखे ० भागवडिउदीर० असंखे० गुणा | हाणिउदी ० विसेसा | अवड्डि० उदी० असंखे० गुणा । एवं मणुसपञ्ज०
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होती है, इसलिए यहाँ पर संख्यातगुणहानि उदीरणाका जधन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पन्द्रह दिन-रात कहा है। शेष कथन सुराम है, क्योंकि उसका अनेक बार स्पष्टीकरण कर आये हैं।
३ २४२. भाव सर्वत्र प्रदयिक होता है।
$ २४३. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश | घोघसे अवक्तव्यउदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे संख्यातगुणहानिउदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यातगुणवृद्धि उबीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यातभागवृद्धि उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं उनसे संख्यात भागहानिउदीरक जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अवस्थित उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। आदेश से नारकियों में संख्यात भागवृद्धिउदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे संख्यात भागहानिउदीरक जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अवस्थित उरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार सूत्र नारकी और सब देवों में जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता हैं कि सर्वार्थसिद्धिमें असंख्यातगुणेके स्थान में संख्यातगुणे करने चाहिए। तिर्यों में संख्यातगुणवृद्धिदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे संख्यात भागवृद्धि उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे संख्यात भागहानिउदीरक जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अवस्थित उदीरक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार पश्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक में जानना चाहिए। किन्तु जहाँ पर अनन्तगुणे कहे हैं वहाँ असंख्यातगुणे करने चाहिए। पञ्चेन्द्रिय तिर्यन्त्र अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में संख्यात भामवृद्धि और संख्यात भागहानिके उदीरक दोनों प्रकारके जीव समान हैं। उनसे अवस्थित उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। मनुष्यों में अवक्तव्य उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे संख्यातगुणहानिउदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात गुणवृद्धिदरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात भागवृद्धि उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात भागहानि उatre जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अवस्थित उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें