Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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उत्तरपयष्टिउदीरणाए अणियोगशरपरूवणा
११४० पोसणा० दुविहो नि० - ओषेण आदेसे० । योषेण दस० णव०
ॐ० सम्म लोगो । सत्त० लोग० असंखे० भागो श्रट्ट- बारहवोद्दस० । [ छष्णं लोगस्स सखे भट्ठोद्दस ] | सेसं लोग असंखे - भागो ।
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१४१. आदेसेण रइय० दस० एव० अ० लोग० असंखे० भागो छ
०उदीर० लोग० असंखे ०। भरणं च सत्तमाए सत्त०
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लोइस० । सत्त० लोग० असंखे० भागो पंचचोस० । भागो । एवं विदियादि सत्तमा त्ति । वरि सगपोसणं समीर लोग० असंखे ० भागो । पढमाए खेत्तं ।
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सूचना की है। गतिसम्बन्धी शेष मार्गणाओंका क्षेत्र ही लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए उनमें सब पदका क्षेत्र लोक के असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। आगेकी मार्गणात्रों में इसीप्रकार क्षेत्र जान लेना चाहिए ।
१४०. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । श्रोघसे एस, नौ और आठ प्रकृतियोंके उदीरकोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सात • मकदियों के उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे किया है। छह प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंने लोकके मसंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके चौदह भाग से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातर्वे भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
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विशेषार्थ - दस, नौ और पाठ प्रकृतियोंके उदीरक जीव एकेन्द्रिय जीव भी होते हैं, "इसलिए इन पदोंके उदीरक जीवोंका स्पर्शन सब लोकप्रमाण बतलाया है । सात प्रकृतियोंके सीरकों में देवों और सासादन गुणस्थानवाले जीवोंकी मुख्यता है और इनका स्पर्शन लोकके असंख्यातकों भाग तथा त्रसनालीके चौरह भागों में से कुछ कम आठ और बारह भागप्रमाण हैं, इसलिए इस पदकी अपेक्षा यह स्पर्शन बतलाया है। शेष पदोंको अपेक्षा मूलमें जो स्पर्शन बतलाया है वह सुगम है, इसलिए उसका अलग से खुलासा नहीं किया है।
$ १४१. आदेश से नारकियों में दस, नौ और आठ प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंने लोकके swaraj भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया हैं । सात प्रकृतियों के उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातयें भाग और सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम पांच भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा छह प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी कार दूसरी पृथिवीसे ब्रेकर सातवीं पृथिवीतके नारकियोंमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि अपना अपना स्पर्शन कहना चाहिए। तथा इतनी विशेषता और है कि सातवीं पृथिवी में सात प्रकृतियों के aire जीवोंने लोकके असंख्यात भागप्रमारण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पहली पृथिवी में स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
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विशेषार्थ दस, नौ और आठ प्रकृतियोंकी उदीरणा सभी मिश्रमादृष्टि नारकी जीवों के सम्भव है और सामान्यसे नारकियों का वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातयें भागप्रमाण और प्रीत स्पर्शन सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण है । यही कारण हैं कि यहाँ पर उक्त तीन पदवाले जीवोंका यह स्पर्शन बतलाया है। सात प्रकृतिक उदीरणास्थान की
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