Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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उत्तरपयडिउदीरणाए अणियोगदारपरूवणा ३१४३. देवेसु दस० णव० अढ० सत्त० लोग. असंखे०भागो अह-णव
। [छएणं लोग० असंखे० अडचोइस० । ] एवं सोहम्मीसाण | भवण.. शब-जोदिसि० दम० णव. अट्ठ० सत्त० लोग. असंखे भागो अधुट्ठा वा मा-गवचोइस० देसूणा । छउदीरलोग मार्गसंख०भागोचावा हाशिवोदका महाराज कुमारादि जाच सहस्सारे ति दस णव० अट्ठ० सत्त. छ० लोग० असंखे भागो चोइ० । आणदादि अचुदा त्ति सव्वट्ठाणाणि लोग० असंखे०भागो छचोहसः । बरि खेलें । एवं जाव० । १ पाणाजीवेहि कालो । ६१४४. सुगममेदमहियारसंभालणसुत्तं ।
किस्से दोपहं पवेसगा केवधिरं कालादो होति ? ११४५, सुगर्म। * जहरणेण एयसमो ।
१४३. देयोंमें दस, नौ, पाठ और सात प्रकृतियों के उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा वसनालीके चौदह भागों से कुछ कम पाठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पशन किया है । छह प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और असनालोके चौदह भागोंमसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पमें जानना चाहिए । भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें दस, नौ, आठ और सात प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातों भागप्रमाण तथा सनालीके चौदह भागों से कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । छह प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्याता भाग, असनालोके चौदह भागों में से कुछ कम साढ़े खोन और कुछ कम बाट भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें दस, नौ, आठ, सात और छह प्रकृतियों के उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यात भागप्रमाण और सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। श्रानत कल्पसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवों में सब स्थानोंक उदोरक जीवोंने लोकके असंख्या-नवे भागप्रमाण और त्रमनालीके चौदह भागोंमेंस कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आगे स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मागणा तक जानना चाहिए।
विशेपाथे—देवोंमें जहां जो स्पर्शन बसलाया है उस ध्यान में रखकर स्पर्शन ले आना चाहिए ।
* नाना जीवोंकी अपेक्षा काल । ६ १४४, अधिकारकी सम्हाल करनेवाला यह सूत्र सुगम है । * एक और दो प्रकृतियों के प्रवेशक जीवोंका कितना काल है ? ६१४५. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है ।