Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
View full book text
________________
जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
&८
भागो । एला ।
०
$ २१६. अंतरा० दुविहो णि० - श्रघे० दे० । श्रघेण भुज० - अप०अब गत्थि अंतरं । श्रवत्त० जह० एयसमत्रो, उक्क० वासपुधरां । एवं तिरिक्वेसु | णवरि अवतः खत्थि । आदेसेण खेरइय० भुज० - अप्प० जह० एयस ० उक० अंतोमु० । श्रवट्टि ० पत्थि अंतरं । एवं सव्वणेरइय-सञ्चपंचिंदियतिरिक्खसव्वदेवाति । मणुसतिए खारयभंगो । णवरि अवत्तः श्रधं । मणुस अपज० भुज०अप्प ०० अहि० जह० एयस०, उक्क० पलिदो० असंखे ० भागो । एवं जाव० । मार्गदर्शक - सप्लार्य माधोदी मावी । एवमेदे सिमुच्चारणावलेण परूवणं काढूण संपहि अप्पाचहुअपरूवणद्वमुत्तरं पबंधमोदारइस्लामो
[ वेदगो ७
****
असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गेणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ - मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंकी संख्या संख्यात है, इसलिए इनमें भुजगाः, अल्पतर और श्रवव्यपदके उदीरकोंका अन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है । मनुष्य अपर्याप्त यह सान्तर मार्गणा है और इनकी संख्या असंख्यात है, इसलिए इनमें भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा अवस्थित पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्य के असंख्यात भागप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है।
०२१६. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- श्रोध और आदेश | ओघसे भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है। उदीरकोंका जधन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व प्रमाण है । इसीप्रकार सामान्य तिर्यक्वोंमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्यपद नहीं है । आदेश से नारकियों में भुजगार और अल्पतरपदके उदीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदके उद्दीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । इसीप्रकार सब नारकी, सब पचेन्द्रिय तिर्यञ्च और सब देवों में जानना चाहिए। मनुष्यत्रिक में नारकियों के समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें अवयपदके उदीरकों का भंग श्रषके समान है । मनुष्य अपर्यातकों में भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पड़के उदीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ - प्ररूपणा में और मनुष्यत्रिक में अवक्तव्यपदके उदीरकों का जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर उपशामकोंके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरको ध्यान में रखकर कहा है । सब नारकी, सब पचेन्द्रिय तिर्यच और सब देवोंमें सुजगार और अल्पतरपद कमसे कम एक समय के अन्तरसे और अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्तके अनरसे नियमसे होते हैं। इससे इनमें इन उदीरा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है। मनुष्य पर्याप्त यह सान्तर मार्गणा है। इसका जघन्य अन्सर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण है । इसीसे इसमें सम पदोंके उदीरकोंका जघन्य श्रन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है ।
१ २१७, भाव सर्वत्र भौदधिक है। इसप्रकार इनका उच्चारणाके बलसे कथन करके अब
: