Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
[ वेवो ७
सेसपदा के० सखेखा । मणुसपञ्ज० - मणुसिणी सव्वदेवा सव्वपदा के० ९ संखेआ ।
एवं जाब० ।
२३८. खेचा० दुबिहो णि० ओषेण आदेसेण य । ओषेण संखेजभागवड्डिहाणि वडि० केव० खेते ? सव्वलोगे । सेसपदा० लोग० असंखे० भागे । एवं तिरिक्खा | ऐसगदीसु सव्वपदा लोग० असंखे ० भागे । एवं जाव० ।
६ २३९. पोसणा० दुविहो णि० - श्रोषेण आदेसे० । श्रघेण संखेज भागवहिहाणि - अवद्वि० केव० खे० पोसि० । सव्वलोगो । सेसपदेहिं लोग असंखे० भागो । एवं तिरिक्खा० । सव्वणेरइय ० -पंचि०तिरिक्ख अपज० मणुस अपज ० सव्वदेवा० भुज०भंगो | पंचिंदियतिरिक्खतिय ३ मन्युस - ३ संखेअ भागवडि- हाणि श्रवडि ० लोग० असंखे० भागो, सच्वलोगो वा । सेसयदेहिं लोग असंखे - भागो । एवं जान० |
Q
जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। शेष पदोंके उदारक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। मनुष्य पयाँम, मनुष्यिनी और सर्वार्थसिद्धि देवोंमें सब पदोंके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
३ २३८. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रोध और आदेश । श्रघसे संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि और अवस्थित पदके उदीरकोंका कितना क्षेत्र है ? सर्वलोक क्षेत्र है। शेष पदोंके उदीरकों का लोक संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। इसी प्रकार सामान्य तिर्थयों में जानना चाहिए। शेष गतियों में सब पदोंके उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोक के श्रसंख्यात में भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना जाहिए।
विशेषार्थ --- संख्यात भागवृद्धि, संख्यावभागद्दानि और अवस्थित उदीरणा मिध्यात्व
अनन्त हैं, इसलिए
गुणस्थान में बहुलतासे होती हैं। इन पदों की उदीरणा करनेवाले जीव भी इनकी अपेक्षा सर्वलोकप्रमाण क्षेत्र बन जानेसे वह तत्प्रमाण कहा है। किन्तु शेष पदका सम्बन्ध गुणस्थान प्रतिपन्न जीवोंसे छाता है और ऐसे जीवांका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए वह तत्प्रमाण कहा है। सामान्य तिर्यों में अपने सम्भव पदोंकी अपेक्षा
प्ररूपणा बन जाने से वह श्रधके समान बतलाई है। तथा गतिसम्बन्धी शेष मार्गणा श्रका क्षेत्र लोक असंख्यातवें भागप्रमाण होनेसे उनमें सम्भव सब पदोंके उदीरकों का क्षेत्र तत्प्रमाण कहा है।
६ २३८. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रोत्र और आदेश । श्रघसे संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि और अवस्थितपदके उदीरकों ने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है, शेष पदोंके उदीरकांने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चों में जानना चाहिए। सब नारकी, पचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त और सब देत्रों में भुजगार उदीरणा के समान भंग है | पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिक और मनुष्यत्रिमें संख्यात भागवृद्धि, संख्यातभागहानि और अवस्थित पदके कोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया हैं। शेप पदारोंने लोकके असंख्यात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।