Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
View full book text
________________
जयधवला सहिदे कसाय पाहुडे
६
[ वेदगो ७
६
अबडि - केवडि खेते ? सन्चलोगे । श्रवत्त० उदीर० लोग० श्रसंखे० भागे । एवं तिरिक्ता० । सुवरि अवत्त० गत्थि । सेसगद्मग्गण सञ्चपदा० लोग० असंखे ० भागे । एवं जात्र० ।
:- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
0-5
Q
* २१२. पोसणा० दुविहो णिः- योषेण श्राद्रेसे ओषेण भुज अ० अडि० के० पोसिदं ? सव्वलोगो । अवत० के० पोसिदं १ लोग० असंखे - भागो । एवं तिरिक्खा | वारे अवत्त० रात्थि । आदर्श रइये.. पदेहिं लोग असंखे० भागो छ चोदस० देखणा । एवं विदियादि सत्तमा ति । वरि सगपोमणं । पढाए खेतं सव्वपंचिदियतिरिक्ख माणूस अश्अ० भज - अप्प० - श्रवट्टि० लोग० असंखे० भागो सबलोगो वा । एवं मसतिए । वरि अवतः लोग० असंखे० भागो। देवेसु सच्चपद० लोग० असंखे ० भागो अड्ड यचोदस० । मत्रणादि जाव सव्वा च सव्यपदारणं सगपोसणं कायन्त्रं । एवं जाय० ।
|
लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वक्तव्य पदके उदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका सर्शन किया है । इसीप्रकार तिचीमें जानना चाहिए | किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें अवकपद नहीं है। श्रादेशसे नारकियोंमें सत्र पत्रों के उदीरक जीवाने लोके असंख्यात भागप्रमाण और जलनालीके चौदह भागों में से कुल कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार दूसरी पृथिवीसे लेकर बटी पृथिवी तक के नारकियोंमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि अपना स्पर्शन कहना चाहिए। पहली पृथिवी में क्षेत्र के समान भंग है। सब पचेन्द्रिय तिर्यख और मनुष्य अपर्याप्तकों में भुजगार, अल्प और अवस्थितपदके उदरक जीवोंने लोकके असंख्यानवें भागप्रमाण र सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार मनुष्यत्रिक में जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें वक्तव्यपदके उदीरक जीवोंने लोकके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवोंमें सब पके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और मनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ और नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। भवनवासियों से लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवरोंमें अपना अपना स्पर्शन करना चाहिए । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
"
विशेषार्थ - श्रघसे और श्रादेशसे गतिमार्गलाके सब भेदोंमें जहाँ जो स्पर्शन है वह वहाँ भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके उदीरकोंका होता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है । मात्र अवक्तव्यपदके उदीरकोंका स्पर्शन लोक के असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है । कारणका निर्देश हम पूर्व में कर आये हैं, इसलिए श्रोघसे और मनुष्यत्रिक में इस पद के उदीरकों का स्पर्शन लोकके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण कहा है।
1
६ २१२. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— श्रोध और श्रादेश । श्रघसे भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके उदीरक जीवों का कितना काल है ? सर्वदा है | अवश्य पदके उदीरक जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । इसीप्रकार तिर्यनोंमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्यपद नहीं है |