Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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स
उत्तरपयडिउदीरणाए भुजगारपरूवणा उकस्सेण तिपिण समया |
१८९. तं जहामिच्छाइटिस्स दस पयडीओ उदीरेमाणस्स भयवोच्छेदेण जमण्यमुदीरणा होदणेको अप्पदरसमयो 1 से काले दुगु छोदयवोच्छेदणाटुं होदण
यो अप्पयरसमयो । तदणंतरसमए सम्म पडियण्णास मिच्छनाणताणुबंधिसाखदेण तदियो अप्पदरसमयो चि। एवं अप्पदरपवेसगस्स उक्कासकालो तिसमययो । एवं चेत्रासंजदसम्माइद्विस्स संजमासंजम पडिबज्जमाणस्स संजदासंजदस्स या म पडियज्जमाणस्स तिसमयमंचपदरुक्कस्सकालपरूवरणा कायया ।
अवहिदपवेसगो केवचिरं कालादो होदि ? ३१९०. सुगमं ।
जहरणेण एगसमओ। ६१९१. तं कथं ? गावस्यक पंवेसमागासी मुविधाममयसमयामजगारपञ्चायण परिणमिय से काले तनियमेनेणावद्विदस्स तदाँतरसमए भयवोच्छेदेणपदपज्जायमुवगया लट्ठो एयसमयमचो अवविदजइण्णकालो। एवमण्णत्थ वि
• उकस्सेण अंतोमुहत्तं । hinnan. । * उत्कृष्ट काल तीन समय है।
६१८१, यथा-दस प्रकृतियोंकी उनीरगण करनेवाले मिध्यादृष्टि जीवके भयकी व्युच्छित्ति हो आनेसे नौकी उदीरणा होकर एक अल्पतर समय प्राप्त हुआ। तदनन्तर समयमें जुगुप्साकी उदयव्युरित्ति हो जानेसे आठ प्रकृतियोंकी उदीरणा होकर दूसरा अल्पतर समय प्राप्त हुआ। तदनन्तर समयमें सम्यक्त्वको प्राप्त हुए उसके मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीकी व्युच्छिति हो जानेसे तीसरा अल्पतर समय प्राप्त हुआ। इसप्रकार अल्पतरप्रवेशकका उत्कृष्ट काल तीन समय होता है। इसी प्रकार संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले असंयतसम्यग्हष्टि जीवके तथा संयमको *प्राप्त होनेवाले संयतासंयत जीवके अल्पतर प्रवेशक सम्बन्धी तीन समयमात्र उत्कृष्ट कालकी प्ररूपणा करनी चाहिए।
* अवस्थितप्रवेशकका कितना काल है ? ६ १८०. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है।
१९१. वह कैसे ? जो नौ प्रकृतियोंका प्रवेशफ जीव जुगुप्साके श्रानेसे एक समय तक मुजगार पर्यायसे परिणत हुआ । पुनः तदनन्तर समयमें उतनी ही प्रकृतियोंकी उदीरणाके साथ अवस्थित रहा । फिर तदनन्तर समयमें भयकी व्युच्छितिक द्वारा अस्पतरपर्यायको प्राप्त हो गया उसके अवस्थितपदका जघन्य काल एक समयमात्र प्राप्त हुआ । इसी प्रकार अन्यत्र भी जानना चाहिए।
* उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।