Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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उत्तरपयडिउदीरणाए श्रश्र गद्दार परूवणा
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सव्वाणाणि सव्वद्धा । एवं जाव० । * यापाजीवेहि अंतरं ।
९ १४९. सुगममेदमहियारपरामरसवर्क ।
* एकिस्से दोण्हं पवेसगंतरं केवश्चिरं कालादो होदि ?
६१५०. सुगमं । मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज * जहणणेण एयसमभो ।
११५१. एगसमय तरिपवाहा णमेदे सिमांतर समए पुणो वि संभवे विप्पडि सेवाभावादो ।
* उकस्सेप लुम्मासा ।
६१५२. किं कारणं १ खवगसेदिसमारोहण विरहकालस्स उक्कस्सेण तथ्यमाणतोवलं भादो ।
* सेसाणं पयडी पवेसगाणं पत्थि अंतरं ।
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$ १५३. सुगमं । एवमोघो समतो । मणुसतिए एवं चैव । वरि मरपुसिणीसु हे सर्वार्थसिद्धि तक देवामें सब पदोंके उदीरक जीवोंका काल सर्वदा है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ — द्वितीयादि पृथिवियोंमें छह प्रकृतियोंके उदीरक जीत्र उपशम सम्यग्दृष्टिही हो सकते हैं और उपशम सम्यग्वष्टियोंका उत्कृष्ट काल पल्य के असंख्यात भागप्रमाण है, इसलिए इन प्रभिषियोंमें छह प्रकृतियोंके उदीरकोंका उत्कृष्ट काल पल्के असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। तथा जघन्य काल एक समय प्रकृति परिवर्तनकी अपेक्षा प्राप्त होता है । पाँच प्रकृतियोंके उदीरकका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंस्वासमें भागप्रमाण इसीप्रकार घटित कर लेना चाहिए। शेष कथन सुगम है ।
* नाना जीर्वोकी अपेक्षा अन्तरकात ।
६ १४. अधिकारका परामर्श करनेवाला यह वाक्य सुगम है ।
* एक और दो प्रकृतियोंके प्रवेशक जीवोंका अन्तरकाल कितना है ?
$ १५०. यह सूत्र सुगम है ।
* अधन्य अन्तर एक समय हैं ।
१५१. क्योंकि प्रवाहका एक समय के लिए अन्तर देकर प्राप्त हुए इन जीवोंका श्रनन्तर समय में फिरसे सम्भव होने में कोई निषेध नहीं है ।
* उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है ।
$ १४२. क्योंकि क्षपकश्रेणिके आरोहणका विरहकाल उत्कृष्टरूपसे तत्प्रमाण उपलब्ध होता है।
* शेष प्रकृतियोंके प्रवेशक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है ।
० १५३. यह सूत्र सुगम है। इस प्रकार ओमप्ररूपणा समाप्त हुई। मनुष्यत्रिक में इसी