Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[वेदगो मुवसंहारगाह परूवेमाणो इदमाह
छ एदेखि भंगाणं गाहा वसाहसवीरणट्ठाणमादि कादूण |
: ९१. सुगमं । णवरि दसएहमुदीरणट्ठाणमादि कादूणेत्ति वयणं पच्छाणुपुब्बीए गाहा धुचिहिदि ति जाणावणहूँ ।
तं जहा । ९२. सुगमं । एकगछक्के कारस दस सर्त चउवाट पक्कन चयन। दोसु च वारस भंगा एकम्हि य होति चत्वारि ॥२॥
९३. सुगम चेदं, अणंतरादीदपबंधेण गयस्थत्तादो। णरि एत्थ गाहासुत्तपुबद्धे चउवीसं भंगा ति पयरणवसेकाहिसंबंधो कायन्वो । एदेसि च भंगाणभप्पप्पणो उदीरणदाणपडियद्वाणमेसो अंकविण्णासो |२०, ९, ८, ७, ६, ५, ४, २, १॥
"| १, ६, ११, १०, ७, ४, १, १२, ४,
भंगोंका कथन करके अब उक्त भंगोंकी उपसंहार गाथाका कथन करते हुए यह कहते हैं
* दस प्रकृतियोंके उदीरणास्थानसे लेकर इन पूर्वोक्त भंगोंकी गाथा इस प्रकार है।
दु. ६१. यह सूत्र सुगम है। किन्तु इतनी विशेषता है कि 'दस प्रकृतियोंके उदीरणा. स्थानसे लेकर' यह वचन पश्चादानुपूर्वीसे गाथा कहेगी यह बतलानेके लिए आया है।
* यथा६ ९२. यह सूत्र सुगम है।
* दस प्रकृतिक स्थानके एक चौबीस, नौ प्रकृतिक स्थानके छह चौवीस, आठ प्रकृतिक स्थानके ग्यारह चौबीस, सात प्रकृतिक स्थानके दस चौवीस, छह प्रकृतिक स्थानके सात चौवीस, पाँच प्रकृतिक स्थानके चार चौबीस और चार प्रकृतिक स्थान के एक चौवीस तथा दो प्रकृतिक स्थान के बारह और एक प्रकृतिक स्थानके चार भंग होते हैं।
६३. यह गाथासूत्र सुगम है, क्योंकि अनन्तर अतीत प्रबन्धके द्वारा इसका अर्थ कह दिया गया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि इस गाथासूत्रके पूर्वाधमें 'चौबीस भङ्ग' इस पदका प्रकरणवश सम्बन्ध कर लेना चाहिए । अपने अपने उदीरगाथानसे सम्बन्ध रखनेवाले इन भङ्गोका यह अंकविन्यास है--
१ चौ. ६ चौ० ११ चौ० १० चौ० ७ चौ० ४ चौ० १ चौ०
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