Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो
एयस०, उक्क० सव्वेसिं तेतीसं सागरोवमाणि देखणाणि । णव० अ० जह० एस० उक्क० अंतोमु० । एवं सच्चरइय० । वरि सगट्टिदी देखणा ।
९ १२७. तिरिक्खेसु दसरहं जह० अंतीमु०, उक्क० तिथिण पलिंदो माणि देणाणि ! एव० जह० एयस०, उक्क० पुञ्चकोडी देखणा । श्रड्डू० जह० एयस०,
अन्तर्मुहूर्त है, सात प्रकृतियोंके उदीरकका जघन्य अन्तर एक समय है और सबका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। नौ और आठ प्रकृतियोंके उदीरकका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसीप्रकार सत्र नारकियों में जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिए।
विशेषार्थ - श्रघसे दस, नौ, आठ और सात प्रकृतियों के उदीरका जो जघन्य अन्तरकाल घटित पति करके बतुला या सुचिमा वह घटित कर लेना चाहिए। उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है, इसलिए यहाँ पर उसका अलग से खुलासा नहीं किया है। रह या मात्र छह प्रकृतियोंके प्रवेशक के जघन्य अन्तर कालका खुलासा, सो जो उपशमसम्यग्दृष्टि या ताकि सम्यग्दृष्टि जीव भय और जुगुप्साका अनुदीरक होकर छह प्रकृतियोंका उदीरक होता है, वह भय और जुएलाकी उदीरणा द्वारा इसका अन्तर करके पुनः कमसे कम अन्त मुहूर्त के बाद ही उनका अनुदीरक होकर इस स्थानको प्राप्त कर सकता है। यही कारण है कि नारकियों में छह प्रकृतियोंके उदीरकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है। यह तो सब पदों के जघन्य अन्तरकालका विचार है। उत्कृष्ट अन्तरकालका खुलासा इस प्रकार है- जो नारकी ree प्रारम्भ और अन्तमें दस प्रकृतियों का उदीरक होकर मध्यमें कुछ कम तेतीस सागर कालक सम्यग्दृष्टि हो दस प्रकृतियोंका अनुदीरक बना रहता है उसके दस प्रकृतियोंके उदीरकका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागर प्राप्त होनेसे तत्प्रमाण कहा हैं तथा जो नारकी जीव rah प्रारम्भ और अन्तमें सम्यग्दृष्टि होकर सात और छह प्रकृतियोंका उदीरक होता है और मध्य में कुछ कम तेतीस सागर काल तक मिध्यादृष्टि बना रहता है उसके छह और सात प्रकृतियोंके उदीरकका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागर प्राप्त होनेसे तत्प्रमाण कहा है । अब रहा नौ और आठ प्रकृतियों के उदीरकके उत्कृष्ट अन्तरकालका विचार सो इनका उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त से अधिक नहीं प्राप्त हो सकता, क्योंकि जो मिथ्यादृष्टि या वेदकसम्यदृष्टि नारकी है उसके आठ और नौ प्रकृतियों के उदीरकका उत्कट अन्तर अन्तर्मुहूर्त से अधिक नहीं प्राप्त होता और जो उपशमसम्यग्दष्टि हैं उसका उसके साथ रहनेका काल ही अन्तर्मुहूर्त है, इसलिए नारकियोंमें नौ और आठ प्रकृतियोंके उदीरकका उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है । यह च प्ररूपण हैं जो सातवें नरकमें अविकल बन जाती है, इसलिए इस प्ररूपराको तो सातवें नरक में इसी प्रकार जानना चाहिए। मात्र अन्य नरकोंरों जघन्य अन्तर तो ओष प्ररूपणा के समान प्राप्त होने में कोई बाधा नहीं है। हाँ दस, सात और छह प्रकृतियों के उदीरकका उत्कृष्ट अन्तर प्रोधके समान नहीं बनता । सो उसका कारण केवल उस उस नरककी भवस्थिति है जिसकी सूचना मूलमें को ही है।
६१२७. तिर्यों में दस प्रकृतियोंके उदीरकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। नौ प्रकृतियों के उदीरकका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है । आठ प्रकृतियोंके उदीरकका जघन्य अन्तर एक समय