Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७ कोधमुदीरेंतो मिच्छ० स० तिराहं कोधाणं णिय उदीर० । छण्णोक० सिया रदीर० । एवं पण्णारसकसाय | हसमुदीरेंतो मिच्छ० स०-रदि० खिय० उदी० | सोलसक० -भय-दुर्गुछ० सिया उदीर० । एवं रदीए। एवमरदि-सोग० । भयमुदीरंतो मिच्छ्र० स० लिय० उदीर० । सेसाणं सिया उदीर० । एवं दुछ० । १५३. मणुसतिए श्रोषं । वरि पत्तरस इस्थिवेदो रात्थि । मणमिणी ० पुरिस० स० णत्थि । इस्थिवे० मा कांदाचार्य सीमा इत्थवेद० सिया उदीरेंतो० ।
सर्जलमुदारती
$ ५४. देवेसु मिच्छ० उदीरेंतो सोलसक० श्रणोक० सिया उदीर० । सम्म० उदीरें तो बारसक० अणोक० सिया उदीर० । एवं सम्मानि० । अताणु० कोइमुदिरेंतो मिच्छ श्रड खोक० सिया उदीर० । तिन्हं कोहाणं शिय० । एवं तिण्डं कमायाणं । अपचक्खाण को हमुदी तो दोन्हं कोहाणं शियमा उदीर० । अता० कोह-दंसस्पतिय
क० सिया उदीर० । एवमेकारसकसाय० । इत्थिवेदमुदीरेंतो दंसणतिय - सोलस
अनन्तानुबन्धी क्रोधी उदीरणा करनेवाला जीव मिथ्यात्व नपुंसकवेद और तीन क्रोधों का नियमसे उदीर होता है। छह नोकपायोंका कदाचित् उदरक होता है । इसीप्रकार शेष पन्द्रह कपायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। हास्यकी उदीरणा करनेवाला जीव मिध्यात्व, नपुंसक वेद और रतिका नियमसे उदीरक होता है। सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है । इसीप्रकार रतिको मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । तथा इसीप्रकार अरति और शोककी मुख्यतासे भी सन्निकर्ष जानना चाहिए । भयकी उदीरणा करनेवाला जीव मिध्याल और नपुंसक वेदका नियमसे उदीरक होता है। शेपका कदाचित् उदीरक होता है। इसीप्रकार जुगुप्साकी मुख्यताले सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
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५३. मनुष्यत्रिक में प्रोत्रके समान भंग है। किंतु इतनी विशेषता है कि मनुष्य पर्यातकों में स्त्रीवेदक उदीरणा नहीं होती । तथा मनुष्यिनियों में पुरुषवेद और नपुंसकवेदक उदीरा नहीं होती। इनमें स्त्रीवेदकी उदीरणा ध्रुव करनी चाहिए। किंतु इतनी विशेषता है कि चार संज्वलन की उदीरणा करनेवाला जीव स्त्रीवेदका कदाचित् उदीरक होता हैं ।
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६५४. देवों में मिध्यात्वको उदीरणा करनेवाला जीव सोलह कषाय और आठ नोकपायों का कदाचित् उदीरक होता है। सम्यक्त्वकी उदीरणा करनेवाला जीव बारह रुपाय और आठ नोकायका कदाचित् उदीरक होता है । इसीप्रकार सम्यग्मिध्यात्व की मुख्यता से सन्निकर्ष जानना चाहिए। अनन्तानुबन्धी कोषको उदोरणा करनेवाला जीव मिथ्यात्व और आठ नोकषायों का कदाचित् उदीरक होता है। शेष तीन क्रोधों का नियमसे उदीरक होता है । इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीमान, माया और लोभ कपायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जान लेना चाहिए । अव्याख्यानावरण कोबकी उदीरणा करनेवाला जीव प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन इन दो Water नियम उदीरक होता है । अनन्तानुबन्धी कोध, तीन दर्शनमोहनीय और आठ नोकपायोंका कदाचित् उदीरक होता है । इसीप्रकार अप्रत्याख्यानावरण मान यादि ग्यारह कषायकी मुख्यता से सन्निकर्ष जानना चाहिए । श्रीवेदको उदीरणा करनेवाला जीव तीन दर्शनमोहनीय,