Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[वेदगो लोग० असंखे भागो सबलोगो या। ..६६५. पंचिंदियतिरिक्खतिय३ मिच्छ० सोलसक०-णवणोक० उदीर० लोगस्स असंखे०भागो सबलोगो । सम्म०-सम्मामि० तिरिक्खोघं । णवरि पज० इथिवे. णस्थि । जोणिणी० पुरिस०-णबुंस० णस्थि । पंचितिरि०अपज-मणुसअपज. मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० उदीर० लोग० असंखे०भागो सबलोगो वा । मणुसतिए पांचितिरिक्जनियभंगो नापति समज खेती
६६. देवेसु मिन्छ०-सोलसक० काढणोक० उदीर० लोगस्स असंखे०भागो अह-णवचोदस० । सम्म०-सम्मामि० लोग० असंखे भागो अट्ठचोइस० । एवं सव्वदेवाणं । णवरि अप्पप्पणो पयडीओ णादण सगपोसणं णेदव्यं । एवं जावः ।
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से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद और पुरुपवेदके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ—सम्यग्दृष्टि तियन सोलहवें कल्प तक मारणान्तिक समुद्धात करते हैं, इसीलिए तिर्यञ्चोंमें सम्यक्त्वके उदीरक जीवोंका अतीत स्पर्शन त्रसनालीके चौदह मागोंमें से कुछ कम छह भागप्रमाण कहा है । शेष कथन स्पष्ट ही है।
६५. पञ्चन्द्रिय तिर्थश्चत्रि में मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकपायोंके उदीरक जीबाने लोकके असंख्यातवें भागतमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उदीरकोंका स्पर्शन सामान्य तिर्यश्चोंके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि पञ्चेन्द्रिय लियञ्च पर्याप्तकों में स्खविंदकी उदीरणा नहीं होती और पश्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनियों में पुरुषवेद और नपुसकबेदकी उदीरणा नहीं होती। पञ्चेन्द्रिय तियेच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकपायोंके उदीरक जीवाने लोकके असंख्याता भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यत्रिकर्म पञ्चेन्द्रियतिञ्चत्रिकके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें सम्यक्त्वका भंग क्षेत्रके समान है।
विशेषार्थ_मनुष्यत्रिको संख्यात मनुष्य ही सम्यक्त्वके उदीरक होते हैं और ऐसे मनुष्योंका अतीत स्पर्शन भी लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है, इसलिए यहाँ पर इसके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। सम्यग्मिध्याबके उदीरकोंका स्पर्शन भी इसीप्रकार प्रकृतमें क्षेत्रके समान जान लेना चाहिए । इसका स्पष्टीकरण सामान्य तिर्यामधीमें स्पर्शनका कथन करते समय कर ही आये हैं। शेष कथन सुगम है।
६६६. देवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और पाठ नोकषायोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा सनालीके चौदह भागमिसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और बसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार सब देवोंमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि अपनी अपनी प्रकृतियों को जानकर अपना अपना स्पर्शन जानना चाहिए । इसीप्रकार अनाहारक