________________ 9) ईश्वर ने जगत् को पैदा किया तो उस ईश्वर को किसने पैदा किया ? इन सब प्रश्नों का अंतिम निष्कर्ष यही है कि यह विश्व अनादिकाल से है / इस संसार में जीव का अस्तित्व भी अनादि काल से है और इस संसार में आत्मा और कर्म का संयोग भी अनादिकाल से है / 2 आत्मा कर्म का कर्ता है और ....... कर्म का भोक्ता है ..... कारण के अभाव में कार्य की उत्पत्ति नहीं होती है / कार्य उत्पन्न हुआ हो तो उसका कोई कारण होना ही चाहिए | इस जगत् में कोई प्राणी सुखी है, कोई दुःखी है, इन सब का कारण उस जीव का पूर्वोपार्जित कर्म ही मानना चाहिए / अपने अपने शुभ-अशुभ कर्म के अनुसार इस जगत में जीवात्मा को सुख-दुःख की प्राप्ति होती है / भोजन अन्य व्यक्ति करे और तृप्ति अन्य किसी को हो, यह हो नहीं सकता। बीमार दूसरा व्यक्ति हो और तीसरा ही व्यक्ति दवाई लेता हो तो वह व्यक्ति रोगमुक्त कैसे हो सकता है ? बस, इस प्रकार इस जगत् में शुभ अथवा अशुभ कर्म कोई और व्यक्ति करे और उस शुभ-अशुभ कर्म की सजा या इनाम अन्य किसी व्यक्ति को मिले, यह कदापि संभव नहीं है। जगत् की विचित्रता में मुख्य कारण कर्म ही समझना चाहिए / इस संसार में जिस प्रकार आत्मा का अस्तित्व अनादिकाल से है, उसी प्रकार आत्मा और कर्म का संयोग भी अनादिकाल से है। मिथ्यात्व, अविरति आदि कर्मबंध के हेतुओं के आसेवन के कारण अनादि काल से आत्मा का कर्म-संयोग है। कर्म का बंध, व्यक्ति की अपेक्षा, आदि वाला है किंत प्रवाह की अपेक्षा अनादि है। इससे सिद्ध होता है कि आत्मा ही कर्म की कर्ता है और आत्मा ही उस कर्म की भोक्ता है। कर्मग्रंथ (भाग-1) 19 -