________________ देहभिन्न आत्मा वीतराग सर्वज्ञ तीर्थंकर परमात्मा महावीर प्रभु ने अपने केवलज्ञान के द्वारा जगत् के स्वरूप का यथार्थ दर्शन कर, सिर्फ जगत् के जीवों के हित के लिए उसका यथार्थ निरूपण किया है / जो वीतराग होता है, उसे न तो किसी के प्रति राग होता है, न किसी के प्रति द्वेष / वीतराग होने के नाते उन्हें झूठ बोलने का कोई प्रयोजन भी नहीं वे वीतरागं परमात्मा, सर्वज्ञ भी हैं, वे अपने ज्ञान के द्वारा जगत् के समस्त पदार्थों के समस्त भावों / पर्यायों को जानते हैं / ऐसे तीर्थंकर परमात्मा का वचन , उपदेश हमारे लिए श्रद्धा करने योग्य है और पालन करने योग्य है / उनके बताए हुए मार्ग पर चलने से हमारी आत्मा का भी कल्याण हो सकता है / तीर्थंकर परमात्मा ने आत्मा के षट्स्थान बतलाए हैं1. आत्मा है। 2. आत्मा परिणामी नित्य है / 3. आत्मा कर्म की कर्ता है / 4. आत्मा कर्म की भोक्ता है | 5. आत्मा का मोक्ष है। 6. मोक्ष का उपाय है / आत्मा का स्वरूप यह संसार मुख्यतया दो तत्त्वों से बना है1) चेतन और 2) जड़ / चेतन कहो, आत्मा कहो, जीव कहो, सब एक ही हैं, ये सब आत्मा के पर्यायवाची नाम ही हैं / कर्मग्रंथ (भाग-1) 43E