________________ पाँच-ज्ञान मइ सुअ-ओही-मण-केवलाणि, नाणाणि तत्थ मइ-नाणं / वंजण वग्गह चउहा, मण नयण विणिंदिय-चउक्का ||4|| शब्दार्थ __ मइ-मति (ज्ञान) सुअ-श्रुत, ओही अवधि, मण=मनःपर्यव, केवलाणि केवलज्ञान, नाणाणि ज्ञान, तत्थ-उसमें, मइनाणं मतिज्ञान, वंजणव्यंजन, वग्गह-अवग्रह, चउहाचार प्रकार, मण नयण-मन और आँख , विणिंदिय चउक्का-सिवाय चार इन्द्रिय / सामान्य अर्थ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान ये ज्ञान के पांच प्रकार है | मतिज्ञान के अवांतर भेद बतलाते है / मन और चक्षु इन्द्रिय को छोडकर शेष चार इन्द्रिय के व्यंजनावग्रह होता है / विशेष अर्थ 1) मतिज्ञान : मन और इन्द्रियों की मदद से जो ज्ञान होता है, उसे मतिज्ञान कहते हैं / इसे आभिनिबोधक ज्ञान भी कहा जाता है / 2) श्रुत ज्ञान : शास्त्र या शब्द के श्रवण के बाद शब्द के पर्यालोचन से पदार्थ का जो बोध होता है, उसे श्रुतज्ञान कहते हैं / जैसे-कान से 'घट' शब्द सुनने पर मात्र 'घट' शब्द का जो ज्ञान हुआ, वह मतिज्ञान कहलाता है और 'घट' शब्द सुनने के बाद 'जल धारण' की क्रिया करनेवाले अमुक आकार वाले पदार्थ को 'घट' कहा जाता है, इस प्रकार घट शब्द से वाच्य 'घट' पदार्थ का जो बोध होता है, उसे श्रुतज्ञान कहा जाता है। मतिज्ञान व श्रुतज्ञान में अंतर यद्यपि मतिज्ञान और श्रुतज्ञान दोनों में इन्द्रिय व मन की सहायता रहती है, फिर भी उन दोनों के बीच काफी अंतर है / कर्मग्रंथ (भाग-1) 72