________________ उच्च गोत्र का बंध दसवें गुणस्थानक तक होता है / उच्च गोत्र का जघन्य बंध आठ मुहूर्त का है और उत्कृष्ट बंध दस कोटा कोटि सागरोपम का है / और वह एक हजार वर्ष के आबाधाकाल के पूर्ण होने के बाद उदय में आता है / नीच गोत्र बंध के हेतु - ___1. जाति, कुल , तप, बल, विद्या, रूप, वैभव , लाभ, ऐश्वर्य आदि का अभिमान करने से नीच गोत्र का बंध होता है / जिनागमों में अरुचि रखने से, बहुश्रुत की सेवा नहीं करने से, अध्ययन की रुचि वाले मुनियों की निंदा करने से, दूसरे के गुण छिपाकर दोष प्रगट करने से, झूठी साक्षी देने से नीच गोत्र का बंध होता है | EEEEEEEEEEE योग अर्थात आत्मा को मोक्ष के साथ जोड़नेवाली रत्नत्रयी की आराधना-साधना / योग की प्राप्ति के लिए 'पूर्व सेवा' अनिवार्य है / योग की पूर्व सेवा अर्थात् गुरुदेवादि का पूजन, सदाचार, तप और मक्ति के प्रति अद्वेष / योग की पूर्व सेवा 'चरमावर्त काल में ही प्राप्त होती है' अचरमावर्त काल में चाहे जितनी बाह्य आराधना-साधना तपश्चर्या हो, उनका कोई मूल्य नहीं है / / कर्मग्रंथ (भाग-1)= = 200 206