Book Title: Karmgranth Part 01
Author(s): Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 213
________________ UP गोत्र कर्म बंध हेतु ..................... गुणपेही मयरहिओ, अज्झयण-ऽझावणारुइ निच्चं / पकुणइ जिणाइभत्तो, उच्चं नीअं इअरहा उ ||60|| शब्दार्थ गुणपेही गुण देखनेवाला, मयरहिओ=मद रहित, अज्झयण ज्झावणा= अध्ययन करने और अध्यापन में, रुइ रुचि, निच्चं=नित्य, पकुणइ बाँधता है, जिणाइ भत्तो जिनेश्वर आदि का भक्त, उच्च-उच्च गोत्र, नीअंनीच गोत्र, इअर हा=इससे विपरीत गाथार्थ हमेशा गुणग्राही , निरहंकारी, पढ़ने-पढ़ाने में रुचिवाला , तथा जिनेश्वर प्रभु का भक्त , उच्चगोत्र कर्म का बंध करता है तथा इससे विपरीत प्रवृत्तिवाला नीच गोत्र का बंध करता है / विवेचन गुणग्राही-जो व्यक्ति हमेशा दूसरों के गुण ही देखता हो और दोषों के प्रति उपेक्षावाला हो / मद रहित-उत्तम जाति, कुल, ऐश्वर्य , लाभ , बल, रूप आदि किसी भी प्रकार का अभिमान नहीं करता हो / उच्च गोत्र बंध के हेतु 1. सम्यक्त्व सहित व्रतों का पालन करने से, जिनेश्वर परमात्मा की पुष्पों से पूजा करने से श्रावक उच्च गोत्र का बंध करता है | 2. जाति , कुल , बल, रूप, तप, विद्या, लाभ और ऐश्वर्य का अभिमान नहीं करने से उच्च गोत्र का बंध होता है | कर्मग्रंथ (भाग-1) 205 2oERE

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