Book Title: Karmgranth Part 01
Author(s): Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 212
________________ देवायु का उदय एक से चार गुणस्थानक तक होता है / देवायु की सत्ता ग्यारहवें गुणस्थानक तक होती है, क्योंकि देवायु बंध हुआ जीव उपशम श्रेणी पर चढ़कर ग्यारहवें गुणस्थानक तक चढ़ सकता है | शुभ-अशुभ नामकर्म का बंध 1) जो व्यक्ति हृदय से सरल-निष्कपट होता है / 2) जो गारव रहित होता है-गारव के 3 भेद हैं / ऋद्धिगारव : जो व्यक्ति धन आदि से अपने आपको बड़ा मानता हो, गर्व करता हो, वह ऋद्धि गारव है / रस गारव : खाने-पीने की स्वादिष्ट चीजों से जो गर्व करता हो, वह रस गारव है। शाता गारव : अपने आरोग्य सुख आदि का गर्व करता हो, वह शाता गारव है। इन तीन गारव से रहित, भवभीरु, क्षमा आदि गुणों से युक्त व्यक्ति शुभ नामकर्म का बंध करता है / जो व्यक्ति माया-कपट करता हो, गारव वाला हो, झूठी साक्षी देता हो, अपनी प्रशंसा व दूसरों की निंदा करता हो, माल में मिलावट कर बेचता हो, दुराचार आदि करता हो, ऐसा व्यक्ति अशुभ नामकर्म का बंध करता है / काया को सदाचार में जोड़ना / आसान है परंतु मन को सद्विचार से जोड़ना कठिन है / दान, शील और तप सरल हैं, क्योंकि ये काया के विषय हैं, जबकि भावधर्म कठिन है, क्योंकि वह मन का विषय है / Mahamaka कर्मग्रंथ (भाग-1) 12043E प

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