Book Title: Karmgranth Part 01
Author(s): Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 210
________________ शब्दार्थ तिरिआउ तिर्यंच का आयुष्य, गूढहियओ=गूढ हृदयवाला, सढो=मूर्ख, ससल्लो शल्य सहित , तहा=और, मणुस्साउ=मनुष्य आयुष्य , पयईइ-प्रकृति से, तणुकसाओ=मंद कषायवाला, दाणरुइ-दान की रुचि, मज्झिम गुणो मध्यम गुणवाला / गाथार्थ गूढ़ हृदयवाला, शठ, तथा मायावी जीव तिर्यंच आयुष्य का बंध करता हैं तथा जो स्वभाव से अल्पकषायी हो, दान-प्रिय व मध्यम गुणों का धारक हो, वह मनुष्य आयुष्य बाँधता है | विवेचन ___ 'मुख में राम बगल में छुरी' रखनेवाला गूढ हृदयी कहलाता है / जो बाहर से अच्छा दिखता हो और मन का मैला हो, वह मायावी कहलाता है। 3. तिर्यंच आयुष्य बंध के कारण : जो शीलं का पालन नहीं करते हैं, दूसरों को ठगते हैं, उपदेश द्वारा रात-दिन मिथ्यात्व का पोषण करते हैं, झूठे माप-तौल द्वारा व्यापार करते हैं, माया-कपट करते हैं, झूठी साक्षी देते हैं, चोरी करते हैं, वे जीव तिर्यंच गति के आयुष्य का बंध करते हैं। तिर्यंच आयुष्य का बंध दूसरे गुणस्थानक तक होता है और इसका उदय पाँचवें गुणस्थानक तक होता है / 2. मनुष्य आयु बंध के हेतु : प्रकृति से मंद कषायवाला, दान में रुचि रखने वाला तथा मध्यम गुण वाला जीव, मनुष्य आयु का बंध करता है। जो व्यक्ति निरंतर परमात्मा की पूजा करता है, निरंतर शास्त्राभ्यास करता है, न्यायपूर्वक अर्थार्जन करता है, यतनापूर्वक मुनि को दान देता है और भद्रिक परिणामी होता है, दूसरों की निंदा न कर, परोपकार में रत रहता है, ऐसा व्यक्ति मनुष्य आयुष्य का बंध करता है | मनुष्य आयु का बंध चौथे गुणस्थानक तक तथा उदय व सत्ता चौदहवें गुणस्थानक तक होती है / संख्याता वर्ष के आयुष्य वाला मनुष्य ही मोक्ष में जा सकता है | असंख्य वर्ष के आयुष्य वाला मनुष्य न तो दीक्षा ले सकता है और न ही मोक्ष जा सकता है / मनुष्य मरकर चारों गतियों में जा सकता है / कर्मग्रंथ (भाग-1) 202

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