Book Title: Karmgranth Part 01
Author(s): Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 208
________________ रूप, रस, गंध और स्पर्श में आसक्त मनवाला नोकषाय चारित्र मोहनीय का बंध करता है / 4. नरक आयु बंध के कारण : महा आरंभ व परिग्रह करने वाला, धन के संग्रह में डूबा रहने वाला, रौद्र ध्यान करने वाला तथा पंचेन्द्रिय प्राणियों का वध करने वाला, मांस-भक्षण करने वाला आदि जीव नरकायु का बंध करता है। ___ अभिमान करने से, ईर्ष्या करने से , अति लोभ करने से , विषयों में आसक्त बनने से, महा-आरंभ, रौद्रध्यान, चोरी करने से, जिन-मनि की हत्या करने से, व्रतभंग करने से, मदिरा-मांस का भक्षण करने से, रात्रिभोजन करने से, गुणी-जनों की निंदा करने से तथा कृष्ण लेश्या से जीव नरक आयुष्य का बंध करता है / नरक आयुष्य बंध का मुख्य कारण रौद्र ध्यान है-इस रौद्र ध्यान के चार प्रकार हैं ___ 1. हिंसानुबंधी रौद्रध्यान : जीवों की हिंसा करने के तीव्र परिणाम को हिंसानुबंधी रौद्रध्यान कहते हैं / अपने दुश्मन आदि को मार डालने, खत्म करने व विनाश करने का विचार करना हिंसानुबंधी रौद्रध्यान है / 2. मृषानुबंधी : असत्य बोलने के तीव्र अध्यवसाय को मृषानुबंधी रौद्रध्यान कहते हैं। 3. स्तेयानुबंधी : चोरी करने के तीव्र अध्यवसाय को स्तेयानुबंधी रौद्रध्यान कहते हैं। 4. संरक्षणानुबंधी : धन के संरक्षण के तीव्र अध्यवसाय को संरक्षणानुबंधी रौद्र ध्यान कहते हैं। परिग्रह-मूर्छा से तिर्यंच गति ज्ञानी गुरु भगवंत के उपदेश का श्रवण कर एक श्राविका को दीक्षा लेने की भावना हुई / उसने अपनी भावना गुरु भगवंत के सामने व्यक्त की / उसकी वैराग्य भावना को देखकर गुरु भगवंत ने उसे दीक्षा प्रदान की / दीक्षा अंगीकार करते समय उसने संसार की अन्य समस्त वस्तुओं का परित्याग किया, किंतु मूल्यवान चार रत्नों के प्रति उसके दिल में तीव्र ममता होने के कारण वह उन रत्नों का त्याग नहीं कर सकी / उसने वे चार (कर्मग्रंथ (भाग-1), 1200

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