________________ ( दर्शनमोहनीय बंध के हेतु) ......................" उम्मग्गदेसणा मग्ग-नासणा देवदव्व-हरणेहिं / दसणमोहं जिणमुणि-चेइय-संघाइ-पडिणीओ ||56 / / शब्दार्थ उम्मग्गदेसणा-उन्मार्गदेशना, मग्गनासणा मार्ग का नाश देवदवहरणेहि देवद्रव्य का हरण, दंसणमोहं दर्शन मोहनीय , जिण=जिनेश्वर, मुणि=मुनि, चेइअ चैत्य, संघाइ पडिणीओ=संघ आदि का विरोधी / गाथार्थ उन्मार्ग का उपदेश देने तथा सन्मार्ग का नाश करने से, देवद्रव्य का हरण (चोरी) करने से, जिन, केवली , मुनि, चैत्य, संघ आदि के विरुद्ध आचरण करने से दर्शनमोहनीय कर्म का बंध होता है / विवेचनदर्शनमोहनीय कर्मबंध के हेतु ___ 1. उन्मार्ग देशना : जिनेश्वर भगवंतों ने रत्नत्रयी की आराधना स्वरूप जो मोक्षमार्ग बतलाया है, उससे विपरीत मार्ग की देशना-उपदेशमार्गदर्शन करने से दर्शन मोहनीय कर्म का बंध होता है | 2. मार्ग-नाश : संसारनिवृत्ति और मोक्षप्राप्ति के मार्ग का अपलाप करना, मार्गनाश है / जैसे-जीव और मोक्ष जैसी कोई चीज नहीं है / 'खाओ, पीओ, मौज करो / ' तप कर शरीर को सुखा देना बेकार है | 3. देव द्रव्य हरण : देव द्रव्य की चोरी करने से, देव-द्रव्य का भक्षण करने से, देव द्रव्य की उपेक्षा करने से, देव द्रव्य का दुरुपयोग करने से, देव द्रव्य की हानि करने से दर्शन मोहनीय कर्म का बंध होता है | 4. प्रभु की निंदा करने से : जो वीतराग सर्वज्ञ परमात्मा है, उनकी निंदा करने से, उनका अपमान व तिरस्कार करने से दर्शन मोहनीय कर्म का बंध होता है। कर्मग्रंथ (भाग-1) 1198