Book Title: Karmgranth Part 01
Author(s): Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 204
________________ शाता वेदनीय कर्मबंध के हेतु 1. सद्गुरु की भक्ति करने से : शालिभद्र, धन्ना अणगार आदि ने पूर्व जन्म में तपस्वी महात्माओं को दान दिया था, परिणामस्वरूप उन्हें / अपार ऋद्धि-सिद्धि और समृद्धि की प्राप्ति हुई थी / 2. करुणा : दया का पालन कर मेघकुमार ने पूर्व के हाथी के भव में एक खरगोश को बचाया था, इसके फलस्वरूप शाता वेदनीय कर्म का बंध किया था, वह हाथी मरकर राजपुत्र-मेघकुमार बना / 3. क्षमा : किसी अपराधी पर भी गुस्सा नहीं करने से और क्षमा रखने से शाता वेदनीय का बंध होता है / गुणसेन राजा की आत्मा ने अंतिम समय में मरणांत उपसर्ग में भी क्षमाभाव धारण किया था / परिणामस्वरूप गुणसेन राजा मरकर सौधर्म देवलोक में पैदा हुए थे / 4. दान : सुपात्र में साधु-साध्वी को दान देने से , साधर्मिक की भक्ति करने से, दीन-दुःखी की सहायता करने से शाता वेदनीय कर्म का बंध होता 5. धर्म में स्थिर रहने से : जीवन में जो भी व्रत-पच्चक्खाण स्वीकार किया हो, उसका दृढ़तापूर्वक पालन करने से शाता वेदनीय कर्म का बंध होता है। वंकचूल ने अपने जीवन में मात्र सामान्य चार नियमों को स्वीकार किया था, परंतु उन नियमों का उसने अत्यंत ही दृढ़ता से पालन किया था, इसके परिणामस्वरूप वह मरकर अच्युत देवलोक में देव बना था / अशाता वेदनीय कर्मबंध के हेतु शाता वेदनीय कर्मबंध के जो हेतु हैं, उनसे विपरीत अशाता वेदनीय कर्मबंध के हेतु हैं। गुरु की आशातना, निंदा, हीलना, तिरस्कार, अपमान, अनादर आदि करने से अशाता वेदनीय कर्म का बंध होता है / कर्मग्रंथ (भाग-1)) E 4196

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