________________ 5. साधु की निंदा : पंच महाव्रतधारी, रत्नत्रयी के साधक साधु भगवंतों की निंदा करने से, उनके ऊपर झूठे आरोप लगाने से दर्शन मोहनीय कर्म का बंध होता है / 6. चतुर्विध संघ की निंदा : साधु, साध्वी , श्रावक और श्राविका रूप चतुर्विध संघ की निंदा करने से भी दर्शन मोहनीय कर्म का बंध होता है / चारित्र मोहनीय बंध के हेतु दुविहं पि चरण मोहं, कसाय हासाइ विसय विवसमणो / बंधइ निरयाउ, महारंभ-परिग्गहरओ रुद्दो / / 57 / / शब्दार्थ दुविहं पि=दोनों प्रकार का, चरणमोहंचारित्र मोहनीय, कसाय हासाइ कषाय-हास्य आदि, विसय=विषय, विवसमणो पराधीन चित्तवाला, बंधइ बाँधता है, निरयाउ=नरक आयुष्य, महारंभ महा आरंभ, परिग्गहरओ=परिग्रह में रत, रुद्दो रौद्र ध्यानी / गाथार्थ ___ कषाय और हास्य आदि नोकषाय के विषयों में आसक्त मनवाला दोनों प्रकार के चारित्र मोहनीय कर्म का बंध करता है | __ महारंभ और परिग्रह में डूबा हुआ और रौद्रध्यान वाला नरक आयुष्य का बंध करता है। विवेचन अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ से आकुल मनवाला जीव अनंतानुबंधी क्रोध आदि का बंध करता है / उसी प्रकार अप्रत्याख्यानीय क्रोध आदि के उदयवाला अनंतानुबंधी चार को छोड़ शेष अप्रत्याख्यानीय क्रोध आदि 12 कषायों को बाँधता है / प्रत्याख्यानीय क्रोध आदि के उदयवाला, प्रत्याख्यानीय व संज्वलन क्रोध आदि आठ कषायों को बाँधता है। संज्वलन क्रोध आदि के उदयवाला संज्वलन आदि चार कषायों का बंध करता है। हास्य आदि छह के उदयवाला, हास्य आदि छह का तथा शब्द, कर्मग्रंथ (भाग-1)) = 1998