________________ ज्योतिष विद्या का इसमें निर्देश है / 9) देवेन्द्रस्तव : इसमें कुल 307 गाथाएँ हैं / इसके रचयिता श्री वीरभद्रगणि हैं / इसमें इन्द्र आदि के स्वरूप का विस्तृत वर्णन है / 10) मरण समाधि : इसमें 663 गाथाएँ हैं / मृत्यु समय की आराधना का विस्तृत वर्णन है / इसके भी रचयिता श्री वीरभद्र गणि हैं | चार मूल सूत्र : वृक्ष की दृढ़ता उसके मूल की आभारी है / उसी प्रकार दीक्षा अंगीकार करने के बाद इन चार मूलसूत्रों का अध्ययन खूब जरूरी है / इन्ही के आधार पर संयम की साधना रही हुई है | इन सूत्रों के बोध से नूतन मुनि परम उल्लासपूर्वक निर्दोष संयम धर्म की आराधना कर सकते हैं / नींव मजबूत हो तो इमारत लंबे समय तक टिक सकती है / इसी प्रकार मोक्षमार्ग की साधना के महल को खड़ा करने के लिए उस साधना का मूल , मजबूत होना जरूरी है / इसी के लिए ये चार मूल सूत्र हैं / 1) आवश्यक सूत्र : साधु जीवन में प्रतिदिन सामायिक, चउविसत्थो, वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और पच्चक्खाण रूप छह क्रियाएँ अवश्य करने योग्य हैं, इसीलिए इन्हें 'आवश्यक' कहते हैं / इस आवश्यक सूत्र पर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीकाएँ उपलब्ध हैं / इनमें सामायिक आदि के स्वरूप का खूब विस्तार से वर्णन किया गया है / 2) दश वैकालिक सूत्र : भगवान महावीर की 5 वीं पाट परंपरा में हुए 14 पूर्वधर महर्षि श्री शय्यंभवसूरिजी म. ने अपने पुत्र मनक मुनि के आत्मकल्याण के लिए पूर्वो में से उद्धृत कर दशवैकालिक की रचना की है / इसमें कुल 10 अध्ययन व 2 चूलिकाएँ हैं / असज्झाय या कालवेला को छोड़कर काल को 'विकाल' कहते हैं / यह सूत्र विकाल समय में पढ़ा जाता है, अतः वैकालिक कहते है / इसकी रचना भगवान महावीर के निर्वाण के 72 वर्ष बाद होने के बाद ही बड़ी दीक्षा की जाती है / इस सूत्र में साधु के आचारों का विस्तृत वर्णन है। (कर्मग्रंथ (भाग-1) 96 का