________________ जिस सूत्र की रचना करते हैं, वे प्रकीर्णक कहलाते हैं | महावीर प्रभु के 14,000 शिष्य थे तो उनके द्वारा विरचित कुल प्रकीर्णक भी 14000 थे / वर्तमान में 22 पयन्ना मिलते हैं, किंतु 45 आगम में 10 पयन्ना ही गिने जाते 1) चतुः शरण प्रकीर्णक : इसका दूसरा नाम कुशलानुबंधी अध्ययन भी है / इसके रचयिता श्री वीरभद्रगणि हैं | इसमें चतुःशरण, दुष्कृत गर्हा और सुकृतानुमोदन का विस्तृत वर्णन है / 2) आतुर पच्चक्खाण : रोग से पीडित व्यक्ति को समाधि हेतु परभव की आराधना के लिए जो प्रत्याख्यान कराए जाते हैं, उसे आतुर प्रत्याख्यान कहते हैं / इसके रचयिता वीरभद्र गणि हैं / इसमें बाल मरण, बाल-पंडित मरण व पंडित मरण का स्वरूप समझाया गया है। ___3) महा प्रत्याख्यान : उसमें साधु की अंत समय की स्थिति का वर्णन है / 'नरक की पीड़ा के सामने यह पीड़ा कुछ नहीं है / ' इस सहनशीलता हेतु सुंदर प्रेरणाएँ की गई हैं। __4) भक्त परिज्ञा : अंतिम समय में आहार त्याग के पच्चक्खाण का वर्णन है / इसके भी रचयिता श्री वीरभद्रगणि हैं / इसमें अंतिम अनशन के तीन भेद भक्त परिज्ञा, इंगिनी मरण और पादपोपगमन अनशन का वर्णन 5) तंदुल वैचारिक : इसमें तंदुल (चावल) की 460 करोड 80 लाख संख्या बताई है / इसमें मुख्यतया अशुचि भावना का चिंतन है / गर्भस्थ जीव के स्वरूप का भी वर्णन है / 6) संस्तारक : इसमें अंतिम समय की आराधना का वर्णन है / आत्मा को अच्छी तरह से तारे, उसे संस्तारक कहते हैं / 7) गच्छाचार : इसमें सुविहित गच्छ के आचारों का वर्णन है / श्री महानिशीथ, बृहत्कल्प तथा व्यवहार सूत्र के आधार पर इसकी रचना हुई है / 8) गणि विद्या : इसमें 82 गाथाएँ हैं / आचार्य भगवंत को उपयोगी कर्मग्रंथ (भाग-1)) 95