________________ 3. आहारक संघातन नामकर्म : जिस कर्म के उदय से आहारक शरीर रूप में परिणत पुद्गलों का सान्निध्य हो, वह आहारक संघातन नामकर्म है। 4. तैजस संघातन नामकर्म : जिस कर्म के उदय से तैजस शरीर के रूप में परिणत पद्गलों का सान्निध्य हो, वह तैजस संघातन नामकर्म है / 5. कार्मण संघातन नामकर्म : जिस कर्म के उदय से कार्मण शरीर रूप में परिणत पुद्गलों का परस्पर सान्निध्य हो वह कार्मण संघातन नामकर्म है / ओराल विउब्वाहारयाण, सग तेय कम्म जुत्ताणं / नव बंधणाणि इअर दु-सहियाणं तिन्नि ते सिंच ||37 / / शब्दार्थ ओराल औदारिक, विउव्वाहारयाण वैक्रिय-आहारक, सग सहित, तेयकम्म तैजस-कार्मण, जुत्ताणं-युक्त, नव-नौ, बंधणाणि=बंधन, इअर-दूसरे, दु-दो, सहियाण सहित , तिन्नितीन, तेसिं-उन दो के साथ, च और | गाथार्थ औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरों का अपने नाम वाले और तैजस व कार्मण शरीर के साथ संबंध जोड़ने से बंधन नाम कर्म के नौ भेद, तैजस-कार्मण को संयुक्त रूप से उनके साथ जोड़ने से और तीन भेद और तैजस व कार्मण को अपने नामवाले व अन्य के साथ संयोग करने पर तीन भेद होते हैं, इस प्रकार इन सभी भेदों को मिलाने पर बंधन नाम कर्म के 15 भेद होते हैं। विवेचन बंधन नामकर्म : जिस प्रकार लाख, गोंद आदि चिकने पदार्थ दो वस्तुओं को परस्पर चिपका देते हैं-जोड़ देते हैं, उसी प्रकार बंधन नामकर्म, शरीर नामकर्म के बल से पहले ग्रहण किए हुए और वर्तमान में ग्रहण हो रहे औदारिक आदि पुद्गलों को बाँध देता है | कर्मग्रंथ (भाग-1) % = 12}= ER 1720