________________ 8. 3. मृदुस्पर्श नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर मक्खन की तरह कोमल हो उसे मृदुस्पर्श नामकर्म कहते हैं। 4. कर्कश स्पर्श नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर कर्कश हो उसे कर्कश स्पर्श नामकर्म कहते हैं / 5. शीत स्पर्श नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर बर्फ की तरह ठंडा हो उसे शीतस्पर्श नामकर्म कहते हैं। 6. उष्ण स्पर्श नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर आग की तरह उष्ण हो उसे उष्ण स्पर्श नामकर्म कहते हैं। 7. स्निग्ध स्पर्श नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर घी की तरह स्निग्ध हो उसे स्निग्ध स्पर्श नाम कर्म कहते हैं / 8. रुक्ष स्पर्श नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर बालू की तरह रूखा हो उसे रूक्ष स्पर्श नामकर्म कहते हैं / नील कसिणं दुगंधं, तित्तं कडुअं गुरुं खरं रुक्खं / सीअं च असुह नवगं, इक्कारसगं सुभं सेसं ||42 / / शब्दार्थ नील-हरा, कसिणं काला, दुगंध दुर्गंध, तित्तं कड़वा, कडुअं=तीखा, गुरुं भारी, खरं-कर्कश, रुक्खं रूखा, सी-शीत, असुह नवगं ये नौ अशुभ, इक्कारसगं=ग्यारह, सुभं=शुभ, सेसं शेष | गाथार्थ वर्ण चतुष्क की बीस प्रकृतियों में से नील , कृष्ण, दुर्गंध, तिक्त, कटु, गुरु, कर्कश, रुक्ष और शीत ये नौ अशुभ प्रकृतियाँ हैं और इन्हें छोड़कर शेष ग्यारह प्रकृतियाँ शुभ हैं। विवेचन वर्ण, गंध, रस और स्पर्श नाम कर्म की कुल 20 उत्तर प्रकृतियाँ हैं / इनमें नौ अशुभ और 11 शुभ हैं / अशुभ वर्ण - कृष्ण वर्ण, नील वर्ण अशुभ गंध - दुर्गंध कर्मग्रंथ (भाग-1)) E1179