________________ शब्दार्थ ___ परघाउदया पराघात नामकर्म के उदय से, पाणी प्राणी, परेसिं-दूसरे, बलिणंपि-बलवान को भी, होइ-होता है, दुद्धरिसो=कठिनाई से जीतनेवाला, उससिण श्वासोच्छ्वास, लद्धिजुत्तो लब्धि से युक्त, हवेइ होता है, उसास नाम वसा श्वासोच्छ्वास नामकर्म के अधीन / गाथार्थ पराघात नामकर्म के उदय से जीव दूसरे बलवान व्यक्ति को भी अजेय हो जाता है और उच्छ्वास नामकर्म के उदय से जीव उच्छवास लब्धि युक्त होता है / ____ 1. पराघात नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव अपने अस्तित्व मात्र से अथवा वचन मात्र से अन्य व्यक्तियों पर अपना प्रभाव डाल सकता हो, उसे पराघात नामकर्म कहते हैं / इस कर्म के उदय से जीव अपने से अधिक बलवान-बुद्धिमान और विद्वानों की दृष्टि में भी अजेय दिखाई देता है, उसके प्रभाव से ही वे पराभूत हो जाते हैं। 2. श्वासोच्छ्वास नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव श्वासोच्छ्वास लब्धि से युक्त होता है, उसे श्वासोच्छ्वास नामकर्म कहते हैं | लब्धि पर्याप्ता जीव को उत्पत्ति के पहले समय से प्राप्त नामकर्म का उदय चालू होता है, उसी समय से वह स्व प्रायोग्य पर्याप्ति को पूर्ण करना आरंभ कर देता है / जब जीव श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति से पर्याप्त होता है, तब उसे श्वासोच्छ्वास नामकर्म का उदय चालू हो जाता है / श्वास लेने छोड़ने का कारण श्वासोच्छ्वास नामकर्म है। आतप-नामकर्म रवि बिंबे उ जीअंगं, ताव जुअं आयवाउ न उ जलणे / जमुसिण फासस्स तहिं, लोहिअ वण्णस्स उदउत्ति / / 45 / / शब्दार्थ रवि बिंबे सूर्य बिंब के विषय में, जीअंग जीव का अंग , तावजुअंताप युक्त, आयवाउ आतप नामकर्म के उदय से, न नही, उपरंतु, कर्मग्रंथ (भाग-)= = 182 = =