Book Title: Karmgranth Part 01
Author(s): Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 200
________________ अज्ञान दशा में भी उच्च कुल में उत्तम आचारों का अस्तित्व देखने को मिलता है / उच्च कुल के संस्कार धर्म की आराधना में सहायक होते हैं / उच्च कुल में जन्मा व्यक्ति सहजता से सद्धर्म के अभिमुख बन जाएगा | * एक नटी के पीछे पागल बने इलाचीकुमार भी कुल के संस्कारों के कारण ही एक छोटे से निमित्त को पाकर, भाव से साधु बनकर केवली बन गए थे। जिस प्रकार सुवर्ण द्रव्य में स्वाभाविक गुण रहे होते हैं, उसी प्रकार उच्च गोत्र में भी संस्कारों की प्राप्ति सहज होती है। आठ कर्मों की उपमा सिरिहरिय समं एअं जह पडिकुलेण तेण रायाई / न कुणइ दाणाइयं, एवं विग्घेण जीवो वि ||53|| शब्दार्थ सिरिहरिअ समं भंडारी के समान, एअं=यह, जह-जिस तरह, पडिकूलेण प्रतिकूल हो तो, तेण वह, रायाइ=राजा आदि न कुणइ नहीं करता है, दाणाइयं दान आदि, एवं इस प्रकार, विग्घेण=अंतरायकर्म से, जीवो-जीव , वि=भी / गाथार्थ ___ अंतराय कर्म भंडारी के समान है जिस प्रकार भंडारी के प्रतिकूल होने पर राजा दान आदि नहीं कर पाता है, इसी प्रकार अंतराय कर्म के कारण जीव दान आदि की इच्छा रखते हुए भी दान आदि नहीं कर पाता है | विवेचन अंतराय कर्म का स्वभाव भंडारी के समान है / राजा ने खुश होकर किसी याचक को दान देने की आज्ञा की हो तो भी भंडारी उसमें बहाना निकालकर विघ्न डाल सकता है | बस, इसी प्रकार जीव को दान आदि की इच्छा पैदा हुई हो तो भी यह अंतराय कर्म उसमें विघ्न डाल देता है / अंतराय कर्म के उदय से दान आदि में अंतराय खड़ा हो जाता है / कर्मग्रंथ (भाग-1)) 192

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