________________ होता है, आदेयनामकर्म के उदय से जीव मान्य वचनवाला होता है | यशनामकर्म के उदय से यश और कीर्ति प्राप्त होती है / स्थावर दशक इससे विपरीत समझना चाहिए। विवेचन 8. सस्वर नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव का स्वर श्रोताओं को प्रिय लगे वैसा हो, उसे सुस्वर नामकर्म कहते हैं / 9. आदेय नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव का कटु वचन भी सर्वत्र आदर पात्र बनता हो उसे आदेय नामकर्म कहते हैं | 10. यश नामकर्म : जिस कर्म के उदय से संसार में सर्वत्र यश और कीर्ति की प्राप्ति हो उसे यश नामकर्म कहते हैं | (स्थावर दशक ___ 1. स्थावर नामकर्म : पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय स्थावर कहलाते हैं | जिस कर्म के उदय से जीव को स्थावरपने की प्राप्ति होती है, उसे स्थावर नामकर्म कहते हैं / 5. अस्थिर नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीभ आदि अवयव अस्थिर होते हैं, उसे अस्थिर नामकर्म कहते हैं / 6. अशुभ नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीवात्मा की नाभि के नीचे के अवयव अशुभ हों, उसे अशुभ नामकर्म कहते हैं / 7. दुर्भग नामकर्म : जिस कर्म के उदय से दूसरों पर उपकार करने पर भी जीव अप्रिय लगता हो, दूसरे जीव वैर-भाव आदि रखते हों, उसे दुर्भग नामकर्म कहते हैं / 8. दुःस्वर नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव का स्वर कर्कश और श्रोताओं को अप्रिय लगे, वैसा हो, उसे दुःस्वर नामकर्म कहते हैं | ____9. अनादेय नामकर्म : जिस कर्म के उदय से जीव का युक्ति-युक्त वचन भी अप्रिय बनता हो, उसे अनादेय नामकर्म कहते हैं। 10. अपयश नामकर्म : जिस कर्म के उदय से अच्छा काम करने पर भी सर्वत्र अपयश मिलता हो, उसे अपयश नामकर्म कहते हैं / Motorce (कर्मग्रंथ (भाग-1) (भाग-1) = 189),