________________ शब्दार्थ बिबेइन्द्रिय, ति=तेइन्द्रिय, चउचउरिन्द्रिय, पणिंदिय=पंचेन्द्रिय, तसा त्रस , बायरओ=बादर नामकर्म के उदय से, बायरा बादर, जीआ=जीव, थूला स्थूल, निअ-निअ अपनी-अपनी, पज्जत्ति पर्याप्ति, जुआ युक्त, पज्जत्ता पर्याप्ता, लद्धि करणेहि लब्धि और करण से | गाथार्थ त्रस नामकर्म के उदय से जीव दो इन्द्रियवाला, तीन इन्द्रियवाला, चार इन्द्रियवाला और पाँच इन्द्रियवाला बनता है / बादर नामकर्म के उदय से जीव बादर बनता है | पर्याप्त नाम कर्म के उदय से स्वयोग्य पर्याप्ति से युक्त होता है / पर्याप्त जीव लब्धि और करण की अपेक्षा दो प्रकार के होते हैं। विवेचन जो जीव ठंडी-गर्मी आदि से बचने के लिए छाया आदि में जा सकते हैं, उन्हें त्रस कहते हैं। त्रस नाम कर्म : जिस कर्म के उदय से जीव को त्रसपने की प्राप्ति हो उसे त्रस नामकर्म कहते हैं / जो जीव ठंडी आदि के त्रास से बचने के लिए छाया आदि में नहीं जा सकते हों, उन्हें स्थावर कहते हैं / बादर नामकर्म जिस कर्म के उदय से जीव का एक शरीर या असंख्य शरीर का पिंड, जो आँख से देख सकते हैं, उसे बादर नामकर्म कहते हैं / जिस कर्म के उदय से असंख्य शरीर का पिंड होने पर भी जो आँख से दिखाई नहीं देता हो, उसे सूक्ष्म नामकर्म कहते हैं / सूक्ष्म पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति जीवों को सूक्ष्म नामकर्म का उदय होता है / यद्यपि बादर वायुकाय में अप्रगट रूप होने से असंख्य शरीर का पिंड भी आँख से दिखाई नहीं देता है, परंतु चमड़ी द्वारा उसका अनुभव कर सकते हैं, अतः उन्हें भी बादर नामकर्म का उदय समझना चाहिए / कर्मग्रंथ (भाग-1)) E41863