________________ संघयण नाम कर्म के छह भेद हैं 1. वज्रऋषभनाराच संघयण नामकर्म : वज्र अर्थात् कीली , ऋषभ अर्थात् वेष्टन-पट्टी और नाराच अर्थात् दोनों ओर मर्कट बंध | जिस संघयण में दोनों ओर से मर्कट बंध से बँधी हुई दो हड्डियों को भेदने वाली हड्डी पर तीसरी हड्डी की कील लगी हो उसे वज्रऋषभ नाराच कहते हैं / जिस कर्म के उदय से हड्डियों की इस प्रकार की रचना हो उसे वज्रऋषभ नाराच संघयण कहते है। 2. ऋषभनाराच संघयण : जिस रचना विशेष में दोनों ओर हड्डियों का मर्कट बंध हो, तीसरी हड्डी का पट्ट भी हो लेकिन तीनों को भेदने वाली हड्डी की कीली न हो / जिस कर्म के उदय से हड्डियों की इस प्रकार की रचना हो, उसे ऋषभ नाराच संघयण नामकर्म कहते हैं | ___3. नाराच संघयण नामकर्म : जिस कर्म के उदय से हड्डियों की रचना में दोनों ओर मर्कट बंध हों लेकिन पट्ट और कील न हों उसे नाराच संघयण नामकर्म कहते हैं / 4. अर्धनाराच संघयण नामकर्म : जिस कर्म के उदय से हड्डियों की रचना में एक ओर मर्कटबंध और दूसरी ओर कील हो उसे अर्धनाराच संघयण नामकर्म कहते हैं / 5. कीलिका संघयण : जिस कर्म के उदय से हड्डियों की रचना में मर्कट बंध और पट्ट न हों किंतु कील से हड्डियाँ जुड़ी हों उसे कीलिका संघयण नामकर्म कहते हैं। 6. सेवार्त संघयण नामकर्म : जिस कर्म के उदय से हड्डियों की रचना में मर्कटबंध, वेष्टन और कील न होकर यों ही हड्डियाँ आपस में जुड़ी हों उसे सेवार्त संघयण नामकर्म कहते हैं | (8) छह संस्थान तथा पांच वर्ण समचउरंसं निग्गोह, साइ खुज्जाइ वामणं हुंडं / संठाणा वन्ना किण्हनील लोहिय हलिद्द सिया ||40 / / (कर्मग्रंथ (भाग-)= कर्मग्रंथ (भाग-1) = 175