________________ नोकषाय जो कषाय नहीं है किंतु कषाय के उदय के साथ जिसका उदय होता है, जो कषाय को पैदा करने में, उत्तेजित करने में सहायक हो, उसे नोकषाय कहा जाता है / हास्य, रति, अरति आदि 9 नोकषाय कहलाते हैं। इस प्रकार कषाय और नोकषाय मिलकर चारित्र मोहनीय के कुल 25 भेद होते हैं / जाजीव-वरिस-चउमास-पक्खगा निरयतिरिय-नर-अमरा / सम्माणु-सव्वविरइ-अह खाय-चरित्त-घायकरा ||18 / / शब्दार्थ जाजीव जीवन पर्यंत, वरिस वर्ष, चउमास चार मास , पक्खगा पक्ष तक, निरय=नारक, तिरिय तिर्यंच, नर मनुष्य , अमरा=देव , सम्म सम्यक्त्व, अणु-सव्वविरइ-देश तथा सर्वविरति , अहक्खाय यथाख्यात, चरित्त=चारित्र, घायकरानाश करनेवाले / गाथार्थ पूर्वोक्त गाथा में कहे गए अनंतानुबंधी , अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण तथा संज्वलन कषाय की कालमर्यादा क्रमशः जीवन पर्यंत, एक वर्ष, चार मास और पंद्रह दिन की है / वे क्रमशः नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति के बंध के कारण हैं और क्रमशः सम्यक्त्व , देशविरति, सर्वविरति और यथाख्यात चारित्र का घात करनेवाले हैं | विवेचन इस गाथा में अनंतानुबंधी आदि चार कषायों की उत्कृष्ट स्थिति, उन कषायों के अस्तित्व में होने वाले आयुष्य के बंध और उन कषायों के उदय से होनेवाले आत्मगुणों के घात का वर्णन किया गया है। किसी व्यक्ति के प्रति क्रोध उत्पन्न हुआ हो और वह क्रोध यदि 15 दिनों में शांत हो जाता हो तो उस क्रोध को संज्वलन क्रोध कहा जाता है अर्थात् संज्वलन क्रोध उत्पन्न हुआ हो तो वह 15 दिन में अवश्य शांत हो जाता है / संज्वलन क्रोध के उदय में आत्मा, आयुष्य का बंध करे तो देवगति के आयुष्य का बंध कर सकती है। कर्मग्रंथ (भाग-1) E1 139