________________ गाथार्थ संज्वलन माया आदि लकड़ी के छिलके, बैल की मूत्र धारा, भेड़ के सींग तथा बाँस की जड़ में रहे टेढ़ेपन समान हैं | संज्वलन लोभ आदि हल्दी के रंग, काजल , बैलगाड़ी के पहिये के कीचड़ तथा किरमिची के रंग समान हैं। विवेचन इस गाथा में चार प्रकार की माया और चार प्रकार के लोभ को उपमा द्वारा समझाया गया है / माया 1) संज्वलन माया : बाँस के छिलके में रहा टेढ़ापन जैसे बिना श्रम के ही दूर हो जाता है, उसी प्रकार जो माया तत्काल दूर हो जाती है, उसे संज्वलन माया कहते हैं / 2) प्रत्याख्यानीय माया : यह माया चलते हुए बैल की मूत्र धारा की वक्रता समान है / यह कुटिल स्वभाव थोड़ी कठिनाई से दूर होता है / 3) अप्रत्याख्यानीय माया : यह माया भेड़ के सींग के समान है / भेड़ के सींग की वक्रता को दूर करना कठिन होता है, इसी प्रकार इस माया की वक्रता भी जल्दी दूर नहीं होती है | __4) अनंतानुबंधी माया : यह माया बाँस की जड में रही वक्रता समान है / जैसे बाँस की जड़ की वक्रता को दूर नहीं किया जा सकता है, उसी प्रकार इस माया को भी छोड़ना अत्यंत ही दुष्कर है / लोभ ___1) संज्वलन लोभ : यह लोभ हल्दी के रंग जैसा है / जैसे हल्दी का रंग जल्दी उड़ जाता है, उसी प्रकार यह लोभ भी तत्काल दूर हो जाता है / 2) अप्रत्याख्यानीय लोभ : कपड़े पर काजल का रंग लग जाय तो थोड़ा श्रम करने पर दूर हो जाता है, उसी प्रकार जो लोभ थोड़े श्रम से दूर होता हो, उसे अप्रत्याख्यानीय लोभ कहते हैं | कर्मग्रंथ (भाग-1)) E1144