________________ सत्ता की अपेक्षा नाम कर्म की 102 प्रकृतियाँ गिनने से कुल 158 भेद होते हैं। बंधन के 15 भेद की जगह 5 ही भेद लिये जाँय तो 148 भेद भी होते हैं। गति-जाति-शरीर निरय तिरि नर सुर गइ, इग बिअ तिअ चउ पणिंदि जाइओ / ओराल विउव्वाहारग-तेअ-कम्मण पण सरीरा ||33 / / शब्दार्थ निरय=नारक, तिरि=तिर्यंच, नर मनुष्य , सुरगइ=देवगति, इग-एक, बिअ=दो, तिय-तीन, चउ चार, पणिंदि-पंचेन्द्रिय, जाइओ=जातियाँ, ओराल औदारिक, विउव्व वैक्रिय, आहारग आहारक, तेअ=तेजस, कम्मण कार्मण, पण पाँच, सरीरा शरीर / गाथार्थ नरक, तिर्यंच , मनुष्य और देव ये चार गतियाँ हैं, एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ये पांच जातियाँ हैं, औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण ये पाँच शरीर हैं / विवेचन सुख-दुःख के उपभोग के लिए अवस्था विशेष की प्राप्ति को गति कहते है / ___ 1) देव गति-उग्र पुण्य के भोग के लिए जीवात्मा को देवलोक में दिव्य सुखवाली अवस्था प्राप्त होती है, उसे देवगति कहते हैं, उसका कारण देवगति नाम कर्म है। __2) मनुष्य गति-मनुष्य गति नाम कर्म के उदय से मनुष्य गति प्राप्त होती है। 3) तिर्यंच गति-तिर्यंच गति नाम कर्म के उदय से तिर्यंच गति की प्राप्ति होती है। कर्मग्रंथ (भाग-1) 164