________________ 4) नरक गति-नरक गति नाम कर्म के उदय से आत्मा को नरक गति की प्राप्ति होती है। ___ चालू भव के आयुष्य की समाप्ति के बाद अगले भव में जिस आयुष्य का उदय चालू होता है, उसी के साथ उस गतिनाम कर्म का उदय भी चालू हो जाता है। ___ जैसे कोई मनुष्य मरकर देवलोक में गया हो तो देवायुष्य के प्रारंभ के साथ ही देव गति का उदय चालू हो जाता है | देवगति में भुवनपति से अनुत्तर तक देवों के सुख में वृद्धि होती रहती है तथा नरक गति में पहली नरक से सातवीं नरक में क्रमशः दुःख की वृद्धि होती रहती है। 2. जाति नाम कर्म परस्पर समान चेतना शक्ति की अपेक्षा संसारी जीवों को पाँच भागों में बाँटा गया है। (2) जातिनाम कर्म : एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीवों में विविध प्रकार के समान परिणाम रूप सामान्य को जाति कहते हैं तथा उस जाति को प्राप्त कराने वाले कर्म को जातिनाम कर्म कहते हैं / इसके मुख्य 5 भेद हैं ___ 1. एकेन्द्रिय जाति नाम कर्म : जिस कर्म के उदय से जीवात्मा को एक ही इन्द्रिय की प्राप्ति होती है-जैसे पृथ्वीकाय, अप्काय के जीव / 2. बेइन्द्रिय जाति नाम कर्म : जिस कर्म के उदय से जीवात्मा को दो इन्द्रियों की प्राप्ति होती है / जैसे-कृमि आदि / 3. तेइन्द्रिय जाति नाम कर्म : जिस कर्म के उदय से जीवात्मा को तीन इन्द्रियों की प्राप्ति होती है / उदाहरण-मकोड़ा आदि / 4. चउरिन्द्रिय जाति नाम कर्म : जिस कर्म के उदय से जीवात्मा को चार इन्द्रियों की प्राप्ति होती है / उदाहरण-बिच्छू आदि / 5. पंचेन्द्रिय जाति नाम कर्म : जिस कर्म के उदय से जीवात्मा को पंचेन्द्रियपने की प्राप्ति होती है / उदाहरण-मनुष्य आदि / (3) शरीर नाम कर्म : संसारी आत्मा इस संसार में शरीर के बिना (कर्मग्रंथ (भाग-1)) 1165