________________ विवेचन प्रति समय ग्रहण किए जा रहे कर्म-पुद्गलों का लोह-अग्नि अथवा क्षीर-नीर की तरह आत्मा के साथ जो संबंध होता है, उसे बंध कहते हैं / कर्म के फल के अनुभव को उदय कहा जाता है | उदय में नहीं आ रहे कर्म पुद्गलों को प्रयत्न विशेष द्वारा जल्दी उदय में लाकर भोगना, उसे उदीरणा कहा जाता है / आत्मा के साथ कर्म-पुद्गलों के अस्तित्व को सत्ता कहा जाता है / जिस प्रकार नाम कर्म के कुल 103 भेद होने पर भी बंध की अपेक्षा से 67 भेद ही हैं उसी प्रकार मोहनीय कर्म के उदय की अपेक्षा से 28 भेद होने पर भी बंध की अपेक्षा से 26 भेद ही हैं / क्योंकि मोहनीय कर्म की दो प्रकृतिसम्यक्त्व मोहनीय और मिश्र मोहनीय का बंध नहीं होता है / बंध तो मिथ्यात्व मोहनीय का ही होता है, परंतु सम्यक्त्व गुण के कारण उसी के जो शुद्ध पुद्गल होते हैं उसे सम्यक्त्व मोहनीय और जो अर्ध शुद्ध पुद्गल होते हैं, उन्हें मिश्र मोहनीय कहा जाता है | इस प्रकार आठ कर्मों की बंध योग्य कुल प्रकृतियाँ 120 हैं / ज्ञानावरणीय की 5 दर्शनावरणीय की 9 वेदनीय की मोहनीय की आयुष्य की नाम की गोत्र की अंतराय की योग 120 उदय और उदीरणा में मोहनीय कर्म की सम्यक्त्व मोहनीय और मिश्र मोहनीय को जोडने से 120 + 2 = 122 भेद होते हैं / कर्मग्रंथ (भाग-1) र 163