________________ संघायगहो संघातन का समावेश, तणूसु-शरीर में, सामण्ण सामान्य से, वण्णचउ वर्ण आदि चार ! गाथार्थ पिंड प्रकृति की कुल 65 प्रकृतियों के साथ 28 प्रकृति (8 प्रत्येक + 10 त्रस + 10 स्थावर दशक) जोड़ने पर तैरानवे प्रकृति होती हैं / 15 बंधन की विवक्षा करने पर 103 होती हैं | बंधन और संघातन का शरीर में समावेश करने पर तथा सामान्य से वर्ण आदि चार ग्रहण करने पर 67 प्रकृति होती विवेचन सत्ता की अपेक्षा नाम कर्म की 93 और 103 प्रकृतियाँ होती हैं / बंधन नाम कर्म और संघातन नाम कर्म की प्रकृतियाँ शरीर के आश्रित हैं, अतः 15 बंधन तथा 5 संघातन के कुल 20 भेद तथा वर्ण-गंध-रस और स्पर्श के कुल 20 भेद के बदले चार ही भेद गिनने पर 16 भेद कम हो जाते हैं / उस प्रकार 20 + 16 = 36 प्रकृति कम हो जाने पर 103-36=67 प्रकृति ही बचती है। बंध, उदय और उदीरणा की अपेक्षा नामकर्म के 67 भेद हैं | इअ सत्तट्ठी बंधोदए अ, न य सम्ममीसया बंधे | बंधुदए सत्ताए, वीस-दुवीस-ट्ठवण्ण सयं ||32 / / शब्दार्थ इअ इस प्रकार, सत्तट्ठी सडसठ, बंधोदए=बंध तथा उदय में, न=नहीं, य और, सम्म सम्यग्, मीसया मिश्र, बंधुदए बंध और उदय में, सत्ताए सत्ता में, वीस-बीस , दुवीस-बाईस, ढवण्ण=अट्ठावन , सयं-सौ / गाथार्थ इस प्रकार 67 प्रकृति बंध, उदय और उदीरणा में होते हैं | सम्यक्त्व मोहनीय और मिश्रमोहनीय की प्रकृति बंध में नहीं होती है अतः बंध, उदय और सत्ता में क्रमशः 120, 122 तथा 158 प्रकृतियाँ होती हैं | कर्मग्रंथ (भाग-1) %EL 162