________________ छोटे अवयवों को उपांग और अंगुली की रेखा और पर्व आदि को अंगोपांग कहते हैं / औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीर में ही अंगोपांग आदि होने से इसके तीन मुख्य भेद हैं __ 1. औदारिक अंगोपांग नामकर्म : जिस कर्म के उदय से औदारिक शरीर में परिणत पुद्गलों से अंगोपांग रूप अवयव बनते हैं, उसे औदारिक अंगोपांग नामकर्म कहते हैं / 2. वैक्रिय अंगोपांग नामकर्म : जिस कर्म के उदय से वैक्रिय शरीर में परिणत पुद्गलों से अंगोपांग रूप अवयव बनते हैं, उसे वैक्रिय अंगोपांग नामकर्म कहते हैं / 3. आहारक अंगोपांग नामकर्म : जिस कर्म के उदय से आहारक शरीर रूप में परिणत पुद्गलों से अंगोपांग रूप अवयव बनते हैं, उसे आहारक अंगोपांग नामकर्म कहते हैं / बंधन नाम कर्म उरलाइ पुग्गलाणं निबद्ध-बज्झंतयाण संबंधं / जं कुणइ जउसमं तं, बंधणमुरलाइ तणुनामा ||35 / / शब्दार्थ उरलाइ-औदारिक आदि, पुग्गलाणं-पुद्गलों का , निबद्ध पहले बँधे हुए, बज्झंतयाणं बँधाते हुए, संबंध संबंध, जं जो कुणइ करता है / जउ समं-लाख के समान, तं वह, बंधणं बंधन नाम कर्म , उरलाइ औदारिक आदि, तणु नामा शरीर के नाम | गाथार्थ जो कर्म लाख के समान बँधे हुए और नए बँधनेवाले औदारिक आदि शरीर के पुद्गलों का आपस में संबंध कराता है, उस कर्म को औदारिक आदि बंधननाम कर्म कहते हैं / विवेचन जिस प्रकार लाख , गोंद आदि चिकने पदार्थ दो वस्तुओं को परस्पर कर्मग्रंथ (भाग-1)) = 169)